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भावों की चयनिका by Archana Anupriya
भावों की चयनिका
- Archana Anupriya
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Archana Anupriya
Jun 22, 20221 min read
"बदलना होगा बंदरों को'
बदलना जरूरी है गाँधी जी के बंदरों को, अगर बदलना है समाज… बिखर रही है हर तरफ बुराई तो जरूरी है सुनना,आवाज रावण की,आतंक की,बुराई की ताकि...
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Archana Anupriya
Apr 19, 20222 min read
"जिंदगी और अंतरात्मा का द्वन्द्व"
कल जिंदगी से उलझ पड़ी मैं बात जब उसूलों पर आयी.. काँटों का पक्ष लिया मैंने बारी जब फूलों की आयी.. समझाती रही जिंदगी मुझे फायदे व्यवहारिकता...
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Archana Anupriya
Feb 18, 20221 min read
"कैकेयी का पश्चाताप"
राजा दशरथ की चहेती रानी, मैं कैकेयी बड़ी उदास हूँ.. ईश्वर को वन-वन भटकाया, मैं वो कलुष इतिहास हूँ... थी बड़ी अभागी किस्मत मेरी,विधाता ने वो...
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Archana Anupriya
Feb 12, 20221 min read
"बर्फ से निकला इंसान"
कोशिश तो बहुत की कुदरत ने सफेद बर्फ की चादर से इंसानों की कालिमा ढकने की पर बर्फ थी कि जाकर इंसानी दिलों में जम गयी खामोश हो गए...
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Archana Anupriya
Feb 12, 20221 min read
"हे माँ शारदे,वर दे"
" हे माँ शारदे, वर दे" हे माँ शारदे, वर दे, माँ वीणावादिनी वर दे... मुझ अज्ञानी की वाणी को, अपने संस्कारों से भरा स्वर दे, माँ वीणावादिनी...
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Archana Anupriya
Sep 17, 20210 min read
"बदल रही हूँ मैं"
बहुत सह लिए, बहुत कह लिए अब अत्याचार सहना छोड़ दिया बदला है समय,बदल रही हूँ मैं अब बेचारी बन रहना छोड़ दिया हाथ तुम्हारा यदि मुझपर उठा तो...
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Archana Anupriya
Dec 28, 20201 min read
"2020 की पीड़ा"
इतिहास साक्षी रहेगा मेरा सदियों तक कराहेंगे लम्हें वो जो दर्द देकर जा रहा हूँ इंसानों को और वक्त को जब भी उसकी सहोगे टीस नफरत से याद...
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Archana Anupriya
Dec 28, 20201 min read
सुनो दिसम्बर..
सुनो दिसंबर, यह जो वक्त की गाड़ी तुम खींचकर यहाँ तक लाए हो बहुत भारी थी मजदूरों पर, मजबूरों पर कमजोरों पर, मजबूतों पर कितनों की कमर टूटी...
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Archana Anupriya
Dec 3, 20202 min read
खुद को जानती हूँ मैं"
ऐसा नहीं है कि-- औरत हूँ तो बस नशा है मुझमें पत्नी हूँ,माँ हूँ,बहन हूँ-- इक दुआ है मुझमें… ऐसा नहीं है कि-- संगमरमर के साँचे में ढला...
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Archana Anupriya
Nov 21, 20201 min read
सूर्य उपासना
है यह एक पूजा ऐसी जहाँ आस्था है एक सी.. न पंडित, न पुरोहित हो यह व्रत पूरे परिवार सहित.. न बंधन, न आडम्बर बस सूर्यदेव रहें आसमान पर.. सभी...
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Archana Anupriya
Oct 18, 20201 min read
"कितने अजीब हैं हम..!"
बड़े चाव से रसोई में हम आटे की लोई से रोटी बेल कर सपनों को आकार देते हैं.. हरी, लाल सब्जियों में तड़का लगाकर, प्रेम की खुशबू से घर सँवार...
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Archana Anupriya
Oct 12, 20201 min read
"बिछोह"
यह कौन रोता है रात भर रोशनी के बिछोह में पत्ते-पत्ते पर फिसलते हैं आँसू शबनम का रूप लिए सारी धरा भर जाती है दर्द की असंख्य बूँदों से......
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Archana Anupriya
Oct 5, 20201 min read
"बदलना होगा बंदरों को'
बदलना जरूरी है गाँधी के बंदरों को, अगर बदलना है समाज… बिखर रही है हर तरफ बुराई तो जरूरी है सुनना,आवाज रावण की,आतंक की,बुराई की ताकि पता...
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Archana Anupriya
Oct 4, 20201 min read
"अपलक निहारती.."
अपलक निहारती हूँ पानी की बूँदों को जो चमक रही थीं कल तक नर्म पत्तों पर ओस बनकर धरा की पेशानी पर थीं मेहनत का चमकता सूरज आज हवा के प्रेम...
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Archana Anupriya
Sep 29, 20201 min read
"कालातीत यात्रा" (The Timeless Journey)
जीवन में यह कैसा परिवर्तन मेरी रूह की गहराइयों में उतरने लगा एक अवसर- स्वयं से मिलने का मन शांति में, आनंद में विचरने लगा... अनजान से पथ...
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Archana Anupriya
Sep 28, 20201 min read
"ऐ पनिहारिन"
ऐ नार नवेली पनिहारिन गुपचुप सी तू क्या बोल रही? कुदरत के हरित आँगन में क्या जीवन संघर्ष को खोल रही ?... जीवन के घट में कर्मों के...
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Archana Anupriya
Sep 26, 20201 min read
इबादत/सजदा
जब कर्मों पर पाप हो भारी, और रूह में बैठा गुनाह रहे, भला फिर कैसे हो इबादत? कैसे सजदे में निगाह रहे? मन पर नशा हो दौलत का, हर पल बस...
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Archana Anupriya
Sep 22, 20201 min read
घोंसला
पक्षी अब वृक्ष पर घर नहीं बनाते हम वृक्ष हटाकर घर बनाते हैं पक्षी अब ढूँढते हैं खिड़कियाँ, रोशनदान, टूटी टोकरी, घर का कोना जिसमें रंगी...
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Archana Anupriya
Sep 4, 20201 min read
"ढलती उम्र"
ढलती हुई साँझ का आकाश कितना रंगीन और सुंदर लगता है तो फिर.. ढलती उम्र की आहट बुरी क्यों लगती है..? अधूरे सपने और अनंत अधूरे अहसास पूरे...
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Archana Anupriya
Aug 30, 20201 min read
"दरकते पहाड़"
गुस्से में थी पर्वत श्रृंखला फट पड़ी थी ज्वालामुखी टूट-टूट गिर रहे थे पत्थर पर्वत थे बेकल और दुःखी.. झरने बन गिर रहे थे आँसू छलनी था पर्वत...
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