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भावों की चयनिका by Archana Anupriya
भावों की चयनिका
- Archana Anupriya
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Archana Anupriya
Aug 23, 20201 min read
"हे मंगलमूर्ति, गजानना.. "
शिव-पार्वती के लाला मंगलमूर्ति गजानना मातु की आज्ञा पालन हेतु अपना शीश भी कटा लिया.. चरणों में माता-पिता के बसते जिनके चारों धाम सिखाया...
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Archana Anupriya
Aug 12, 20201 min read
"बंसी"
बांस की एक पतली सी डंडी कई छेदों के घाव लिए दर्द में पुकारती है जब अपने प्रेम परमेश्वर को साँसें बज उठती हैं उसकी धुन लहराने लगती है...
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Archana Anupriya
Aug 5, 20201 min read
"श्री राम से शिकायत, दीपावली के चाँद की"
दीपावली की वह अद्भुत रात थी श्री राम के अयोध्या वापसी की बात थी.. सारी धरा खुशियों से भरी थी हर तरफ जलते दीपों की लड़ी थी.. प्रसन्नता भरे...
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Archana Anupriya
Aug 1, 20201 min read
नया आदमी
आदमी पहले मशीन था दिन-रात दौड़ता भागता पत्थरों से बनीं थीं धड़कनें निष्प्राण,संवेदनहीन, बनावटी विधाता ने बंद कर लिए दरवाजे तन्हाई में फूटने...
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Archana Anupriya
Jul 31, 20201 min read
प्रेमचंद- "मानसरोवर" का "हंस"
मिट्टी से जुड़ा एक विराट व्यक्तित्व दुनिया को सुनाता मिट्टी का दर्द हिन्दी-उर्दू बहनों को आपस में गले मिलाता पैबन्द से निकली धारदार...
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Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
“आईना”
कल जब मैंने आईना देखा, खुद को बहुत परेशाँ देखा.. थी बालों में सफेदी, और, गालों पर झुर्रियां… सोचने लगी मैं-”हाssयय ! ये मेरा अक्स है...
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Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
“यादें”
दबे पाँव चली आती हैं यादें, जब भी अकेली होती हूँ… मन को साथ ले जाती हैं, उन किरदारों के बीच जो मेरे वजूद का हिस्सा रहे हैं.. मन को कुरेद...
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Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
उलझन
मकड़ी की जाली सी उलझनें हैं जिंदगी की न जाने कौन सा सिरा कहाँ से शुरू होकर कहाँ खत्म हो जाता है कभी परेशान करता है मन कभी सुलझा देता है...
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Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
काल
सुनाई नहीं देती काल के कदमों की चाप पर हर पल महसूस होती है कण-कण पर इसकी थाप.. सुख और दुख,हँसीऔर गम समय की सभी लीला ही तो है बेपनाह...
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Archana Anupriya
Jul 25, 20201 min read
“आँसू की आप बीती”
व्यथा की लहरों से निकलकर खड़ा था नयनों के द्वार पे, बंद थे पलकों के दरवाजे था खुलने के इंतजार में.. टूटकर सपना बिखर गया था ह्रदय में किसी...
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Archana Anupriya
Jul 25, 20201 min read
मन का साथी-किताब
थके से मन को मेरे सुकून देती हैं किताबें यादों, सपनों, ख्यालों का हुजूम हैं किताबें… ऊब जाता है मन जब दुनिया के स्वार्थी आचरण से उलझ जाता...
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Archana Anupriya
Jul 25, 20201 min read
प्यारा खत
साड़ी की तहों के बीच, एक खत पुराना मिला… यादों के दरवाजे खोल कर, वो गुजरा हुआ जमाना मिला… बिखर गए मोती बीते लम्हों के, उन्हीं में वह खोया...
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Archana Anupriya
Jul 23, 20201 min read
"अपनों की परख"
जीवन के इम्तिहान में छल से भरे जहान में अपनों की होती है परख दुःखों के आसमान में… जब साथ में समय न हो क्या होगा आगे तय न हो तब वक्त की...
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Archana Anupriya
Jul 23, 20201 min read
माँ का पद
जीवन के उतार-चढ़ाव भरे रास्तों में एक पद ऐसा भी है इस संसार में जिसकी प्रतिष्ठा की खातिर वो ईश्वर भी अत्यंत आतुर हैं और नम्र हैं व्यवहार...
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Archana Anupriya
Jul 20, 20201 min read
हे शिव शंकर
ना आदि है, ना अंत है, सीमाएं भी अनंत हैं, हैं "ऊँ" के आकार में, जिनसे सृष्टि जीवन्त है। हर काल के कपाल हैं, हम सबके महाकाल हैं, विभोर...
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Archana Anupriya
Jul 20, 20201 min read
"बहू"
दो घरों के बीच अहसासों से बुनी सेतु बनी मैं मायका और ससुराल… दो भिन्न परिवारों को मर्यादा और प्यार की अटूट कड़ी से जोड़ा मैंने मानवता हुई...
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Archana Anupriya
Jul 20, 20201 min read
"सरहदें"
कितना अच्छा हो यदि हर सरहद पर तैनात हों फौजियों,गोलियों,टैंकों की जगह सूर, तुलसी,मीर,गालिब,फैज और जंगें हुआ करें महज...
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Archana Anupriya
Jul 20, 20201 min read
"रिश्ता अनाम सा"
एक रिश्ता अनाम सा धरती और आकाश के बीच सृष्टि के आरंभ से ही पनपता,परिपक्व होता क्षितिज पर कहीं मिल कर भी नहीं मिल पाते हैं दोनों एक अनबुझ...
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Archana Anupriya
Jul 20, 20201 min read
"कर्म की गठरी"
गठरी लादे कर्मों की चल रहा हर इंसान पोटली पाप और पुण्य की बस खोलेंगे भगवान.. बदल जाएगा क्षण में सब कुछ भाग्य, तकदीर, हाथों की लकीरें...
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Archana Anupriya
Jul 18, 20201 min read
मेरी कलम
मेरी कलम की नोंक
जब शब्दों का जहान रचती है
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