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Writer's pictureArchana Anupriya

“यादें”

दबे पाँव चली आती हैं यादें,

जब भी अकेली होती हूँ…

मन को साथ ले जाती हैं,

उन किरदारों के बीच

जो मेरे वजूद का हिस्सा रहे हैं..

मन को कुरेद कर दिखाती हैं

वो तस्वीरें,जो खो चुकी हैं..

पुकारती हैं उन आवाजों को,

जो चिर निद्रा में सो चुकी हैं..

सामने आ खड़ा होता है

वो मंजर, जिसमें बचपन का भोलापन था,

वो आंगन, जिसमें जवाँ हँसी की गूँज थी,

फिर अंदर…

जज्बातों के बादल टूटने लगते हैं,

आँखें बरसती हैं और

अहसास भींगने लगते हैं…

खामोश हैं मेरे दिन-रात,

न हँसते हैं ,न रोते हैं…

बस फरियाद करते हैं खुदा से —

“यादों का वजूद मिटा दे,

उन्हें बार-बार आने की सजा दे,

ले चल ऐसी मंजिल पर

मेरे अहसासों के कदम,

जहाँ न कुछ पाने की खुशी हो,

और, ना खोने का गम….।”

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