पक्षी अब वृक्ष पर घर नहीं बनाते
हम वृक्ष हटाकर घर बनाते हैं
पक्षी अब ढूँढते हैं
खिड़कियाँ, रोशनदान,
टूटी टोकरी, घर का कोना
जिसमें रंगी पुती होती हैं
कटे वृक्ष की आत्माएँ
उन आत्माओं की आवाज सुनकर
उनकी खुशबू ढूँढ कर
आते हैं पक्षी घर में
कुदरत ने पूरी धरा दी थी उन्हें
हमने बेच दी मिट्टी
ढल गए हम सीमेंट और कंक्रीट में
हो गए हम पत्थर
पक्षी का घोंसला अब तिनकों से नहीं
हौसलों और उम्मीदों से बनता है...
©अर्चना अनुप्रिया
Comentarios