जो भक्त हैं महाकाली की शक्ति के..
भला क्यों डरें दुश्मनों की हस्ती से...
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ममता,दुलार और स्नेह की स्वरूप है जो...
जगत माता,जगत जननी महागौरी हैं वो...
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दौलत के पहाड़ पर बैठकर देखा है मैंने...
छुटपन के चंद सिक्कों में ज्यादा अमीरी है...
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पहले अक्ल कम थी,
हम दिल से बात करते थे..
अब होशियार हो गए हैं,
मूड और मतलब देखते हैं..
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मुझे माँगने का सलीका नहीं..
पर तेरे देने की अदा निराली..
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जुबां की बगावत बर्दाश्त नहीं दुनिया को...
सच बोलनेवाला अक्सर तन्हा हो जाता है...
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हर हालात में ढल जाने का हुनर रखा है..
देखते हैं सब, पर खुद पर नजर रखा है..
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सिमट गयीं हैं सारी ख्वाहिशें कहकशाँ बनकर...
तेरी आँखों की उमड़ती घटाओं को जबसे देखा है मैंने...
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दूरियाँ कर लीं हम इन्सानों ने,
फिर भी तुझे चैन नहीं,ऐ कोरोना..
अब और कितने इम्तिहान लेगा?
बहुत खलता है तेरा हमारे बीच में होना..
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बहुत नचाती है जिंदगी,
तू हर पल अपनी ताल पर..
कभी जरूरतों,कभी ख्वाहिशों
तो कभी रोटी के सवाल पर...
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दिल के मुल्कों की सरहद नहीं होती..
कोई किसी के भी दिल में रह सकता है..
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ये लोग हैं साहब,कुछ तो कहेंगे..
खामोश रहे तो जिंदा कैसे रहेंगे..
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न प्रेम से देखा,न खैरियत पूछी..
उसने आज भी मेरी हैसियत देखी...
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दिल में लगी आग आँखों के रास्ते बहने लगी..
मुस्कुरा कर छुपाने की कोशिश सब कह गई..
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चूँकि मैं सब समझता था..
इसीलिए,मुझे ही समझना पड़ा..
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किसी मोड़ पर जब
परेशानियों का सैलाब आये..
बढ़ा देना हाथ साथी,
हम वहीं खड़े होंगे साथ तुम्हारे..
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शाखों ने जरा साथ क्या छोड़ दिया..
हवाओं संग आवारा हो गया पत्ता..
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सब कुछ खरीद लिया उसने
खुद से नीचे उतरकर..
एक चीज थी जमीर,जो फिर
उसे मिली नहीं कभी..
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अर्चना अनुप्रिया
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