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Writer's pictureArchana Anupriya

My Quotes

मन के राज कभी आँखों से जाने नहीं जाते..

अक्सर चेहरों से इंसान पहचाने नहीं जाते..

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इंसान का खुद पर भरोसा हो अगर..

तो,मुकाबला भी खुद से ही होता है,..

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मंजिल क्या और रास्ता क्या..

हौसला है तो फासला क्या..

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तुम्हारे बदल जाने में कुछ नया नहीं..

शर्मिंदा तो अपने यकीन पर हूँ मैं तो..

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जैसे जैसे "मैं" बड़ा होता गया..

वैसे वैसे ही मैं छोटा होता गया..

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शबनम भरी धरती कहती है,

आसमां के फैले उजालों से..

नफरत की धुंध घेरने लगी है,

कुछ फरिश्ते और उतारे जायें..

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धर्म-कर्म के पुनरुत्थान के लिए

हर जीव के स्वाभिमान के लिए

अनैतिकता के अवसान के लिए

मर्यादाओं के पुनर्निर्माण के लिए

जन-जन के अंतर्मन में राम आयेंगे..

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बहुत कोशिश कर ली पारे ने मगर..

इंसानों से ज्यादा गिरना नहीं आया..

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निकाल कर वक्त इस जमाने से..

कभी मिलें हम किसी बहाने से..

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माना कि हॉस्टल की दाल पानी वाली थी..

मगर दोस्त, जिंदगी तो वही पुरानी वाली थी..

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कर्ता करे न कर सके

श्री राम करे सो होय..

तीन लोक,हर दिशा में

श्रीराम से बड़ा न कोय..

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बहुत शोर है अंदर..

बस लब खामोश हैं..

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श्रीराम के आराध्य,

भांग,धतूरे से साध्य..

सम्पूर्ण भी,अंश भी

सृजन भी,विध्वंस भी..

सौम्य भी हैं,भयंकर भी

वही शिव हैं,वही शंकर भी..

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आसान नहीं है राम होना,त्याग जरूरी है मर्यादा भी..

पराक्रम भी चाहिए और हो जीवन विनम्र,सादा भी..

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मन हम सबका एक मंदिर है,

वहाँ बस रामजी विराजे रहें..

पाप का कोई भाग नहीं होगा

बस राम के नाम को थामे रहें..

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प्रेम और अनुराग के रिश्ते

हमेशा अनन्त होते हैं..

उतार-चढ़ाव कैसे भी हों,

ये जीवन पर्यन्त होते हैं..

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हल्का हुआ जब बोझ स्कूली बस्ते का..

जिम्मेदारियों का बोझ भारी होने लगा..

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गुनाह कहाँ तक छुपा सकेगा कोई हुजूर..?

ये जमीन भी उसकी,ये आसमां भी उसका..

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निखरना है कुछ और अभी

ऐ जिंदगी, जरा थम जा

कुछ देर रुककर तुझे देख तो लूँ..

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घड़ी ठीक करने से वक्त ठीक नहीं होता..

अच्छे-बुरे कर्म ही लाते हैं अच्छा-बुरा वक्त..

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हर मजहब का दावा है उसके दर पर पहुँचाने का..

दर खुला रहता है जिसका हर वक्त सबके लिए..

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कोई तो है मेरे अंदर,

जो मुझ पर नजर रखता है..

मुश्किलें आयें तो,

संभालने का असर रखता है..

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नागरिकों के हितों की रक्षा का संधान है..

सबको जोड़े रखे,यह भारतीय संविधान है..

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अल्फाजों,हर्फों में छुपी कुछ

मुस्कानें हैं, दबे कुछ गम हैं..

महज स्याही की नमी नहीं ये

इनमें कुछ तुम हो,कुछ हम हैं..

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एक कोख से दूसरी कोख तक का सफर है,जिंदगी..

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जब सिर पर शिवजी कृपा करें..

कभी भक्त न कोई कष्ट सहे..

जब शिवशंकर में ध्यान लगे..

घर में खुशियों की नदी बहे..

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इतरा रही थीं खाली कुर्सियां

ओहदे चिपक रहे थे उनसे..

बेबस ताक रहे थे नेमप्लेट

इंसान की कोई पहचान न थी..

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फुरसत के लम्हें मुस्कुराने लगे..

जब गर्म चाय की प्याली ने

यादों की पोटली खोली..

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यादों का पहरा रहता है ख्यालों पर..

कुछ बीते पल धुंध से छाये रहते हैं यहाँ..

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©अर्चना अनुप्रिया

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