मन के राज कभी आँखों से जाने नहीं जाते..
अक्सर चेहरों से इंसान पहचाने नहीं जाते..
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इंसान का खुद पर भरोसा हो अगर..
तो,मुकाबला भी खुद से ही होता है,..
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मंजिल क्या और रास्ता क्या..
हौसला है तो फासला क्या..
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तुम्हारे बदल जाने में कुछ नया नहीं..
शर्मिंदा तो अपने यकीन पर हूँ मैं तो..
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जैसे जैसे "मैं" बड़ा होता गया..
वैसे वैसे ही मैं छोटा होता गया..
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शबनम भरी धरती कहती है,
आसमां के फैले उजालों से..
नफरत की धुंध घेरने लगी है,
कुछ फरिश्ते और उतारे जायें..
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धर्म-कर्म के पुनरुत्थान के लिए
हर जीव के स्वाभिमान के लिए
अनैतिकता के अवसान के लिए
मर्यादाओं के पुनर्निर्माण के लिए
जन-जन के अंतर्मन में राम आयेंगे..
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बहुत कोशिश कर ली पारे ने मगर..
इंसानों से ज्यादा गिरना नहीं आया..
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निकाल कर वक्त इस जमाने से..
कभी मिलें हम किसी बहाने से..
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माना कि हॉस्टल की दाल पानी वाली थी..
मगर दोस्त, जिंदगी तो वही पुरानी वाली थी..
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कर्ता करे न कर सके
श्री राम करे सो होय..
तीन लोक,हर दिशा में
श्रीराम से बड़ा न कोय..
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बहुत शोर है अंदर..
बस लब खामोश हैं..
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श्रीराम के आराध्य,
भांग,धतूरे से साध्य..
सम्पूर्ण भी,अंश भी
सृजन भी,विध्वंस भी..
सौम्य भी हैं,भयंकर भी
वही शिव हैं,वही शंकर भी..
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आसान नहीं है राम होना,त्याग जरूरी है मर्यादा भी..
पराक्रम भी चाहिए और हो जीवन विनम्र,सादा भी..
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मन हम सबका एक मंदिर है,
वहाँ बस रामजी विराजे रहें..
पाप का कोई भाग नहीं होगा
बस राम के नाम को थामे रहें..
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प्रेम और अनुराग के रिश्ते
हमेशा अनन्त होते हैं..
उतार-चढ़ाव कैसे भी हों,
ये जीवन पर्यन्त होते हैं..
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हल्का हुआ जब बोझ स्कूली बस्ते का..
जिम्मेदारियों का बोझ भारी होने लगा..
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गुनाह कहाँ तक छुपा सकेगा कोई हुजूर..?
ये जमीन भी उसकी,ये आसमां भी उसका..
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निखरना है कुछ और अभी
ऐ जिंदगी, जरा थम जा
कुछ देर रुककर तुझे देख तो लूँ..
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घड़ी ठीक करने से वक्त ठीक नहीं होता..
अच्छे-बुरे कर्म ही लाते हैं अच्छा-बुरा वक्त..
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हर मजहब का दावा है उसके दर पर पहुँचाने का..
दर खुला रहता है जिसका हर वक्त सबके लिए..
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कोई तो है मेरे अंदर,
जो मुझ पर नजर रखता है..
मुश्किलें आयें तो,
संभालने का असर रखता है..
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नागरिकों के हितों की रक्षा का संधान है..
सबको जोड़े रखे,यह भारतीय संविधान है..
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अल्फाजों,हर्फों में छुपी कुछ
मुस्कानें हैं, दबे कुछ गम हैं..
महज स्याही की नमी नहीं ये
इनमें कुछ तुम हो,कुछ हम हैं..
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एक कोख से दूसरी कोख तक का सफर है,जिंदगी..
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जब सिर पर शिवजी कृपा करें..
कभी भक्त न कोई कष्ट सहे..
जब शिवशंकर में ध्यान लगे..
घर में खुशियों की नदी बहे..
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इतरा रही थीं खाली कुर्सियां
ओहदे चिपक रहे थे उनसे..
बेबस ताक रहे थे नेमप्लेट
इंसान की कोई पहचान न थी..
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फुरसत के लम्हें मुस्कुराने लगे..
जब गर्म चाय की प्याली ने
यादों की पोटली खोली..
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यादों का पहरा रहता है ख्यालों पर..
कुछ बीते पल धुंध से छाये रहते हैं यहाँ..
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©अर्चना अनुप्रिया
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