सफर है रात भर का और फलक पर चाँद तन्हा...
इश्क की राह में अँधियारा भी है और तन्हाई भी..
बहुत मुस्कुराते हैं तस्वीरों में वे रिश्ते..
जो अंदर से बहुत खोखले होते हैं..
शहरों के हुक्काम जो मयखाने नहीं बनाते..
तो टूटे हुए दिल सारे खुदा जाने कहाँ जाते..
फलक पर पूरा चाँद,हँसते हुए सितारे और धरा पर बिखरी चाँदनी..
आज फिर कोई नयी कहानी का आगाज है शायद..
चाहा तो बहुत पर
पूछ न सके हाल उनका..
वो गुजर गए सामने से,
मुझे बाँधे रहा ख्याल उनका..
मुहब्बत की फितरत भी अजीब है..
कभी खत्म नहीं होती,भले अधूरी हो..
तुम दूर रहो या पास रहो..
हर पल महसूस करती हूँ तुम्हें..
बड़ी रिश्वतखोर हूँ मैं..
मुझे मेरी जिंदगी के लिए,
दोस्तों की मुस्कान चाहिए..
अजब इत्तेफाक है ये..
जो दिखता नहीं,
बहुत खूबसूरत लगता है..
ख्वाहिशों के बादल
उमड़ने लगे हैं पलकों में..
डरती हूँ टूटकर
बारिश न कर दें कहीं..
©अर्चना अनुप्रिया
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