हर रात फलक पर भटकता है..
न जाने किसे ढ़ँढ़ता है ये आवारा चाँद..
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एक अदा आपकी पर्दे में छुप जाने की..
एक हसरत हमारी इस चाँद को पाने की..
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कलायें तो बहुत दिखायीं चाँद ने दिल लुभाने की..
निगाहें किसी काबिल न रहीं तुम्हें देखने के बाद..
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हाले दिल का राजदार है मेरा ये फलक का चाँद..
चाँदी सी हँसी हँसता है, शबनम के आँसू रोता है..
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समझ नहीं पा रही हूँ मैं..
तन्हा हूँ मैं या तन्हा है चाँद..
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