"अजीब है वर्दी वाली माँ"
गोद के बच्चे को दूध पिलाकर
थपकी देकर,उसे सुला कर
नैनी को जरूरी बात समझा कर
परिवार में सबको खिला-पिलाकर
निकल पड़ी पिस्तौल लगाकर
रखकर पालने में अपनी जाँ
अजीब है वर्दी वाली माँ..
स्कूल से लाल अब आया होगा
न जाने उसने क्या खाया होगा?
किसने होमवर्क करवाया होगा?
किसे मन का दर्द बताया होगा?
रोया तो नैनी ने समझाया होगा
मन घूमे दफ्तर में कहाँ-कहाँ
अजीब है वर्दी वाली माँ..
कल बेटी ससुराल से आई है
कितना कुछ सबके लिए लाई है
बगिया बच्चों से चहचहायी है
पर यह कैसी अजब घड़ी आई है
ड्यूटी ने सब कुछ भुलाई है
सुरक्षा के लिए सीमा पर वहां
अजीब है वर्दी वाली मां..
कभी नजर उतारे कभी घर सँवारे
चलती रहे हरदम न थके न हारे
कभी युद्ध सीमा पर,कभी त्योहार हमारे
हर जगह है वह, सब उसी के सहारे
करुणा या हौसला-सब उसी के नजारे
है उसी से खुशहाल यह सारा जहां
अजीब है वर्दी वाली मां..
©
अर्चना अनुप्रिया
Yorumlar