top of page
Writer's pictureArchana Anupriya

"अप्रैल फूल"


"अप्रैल फूल"


सुबह-सुबह एक मैसेज आया-"आपलोग ठीक हैं न,ध्यान रखियेगा" और फिर भूकंप में क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए, इसपर एक पोस्ट था।मैसेज हमारे किसी परिचित के नंबर से था,इसीलिए मुझे लगा कि शायद दिल्ली-एन सी आर में फिर से भूकंप आया है।फौरन टी. वी. ऑन किया और न्यूज के सारे चैनल खंगाल लिये परन्तु कहीं भी दिल्ली या किसी अन्य शहर में भूकंप के आने की कोई चर्चा नहीं थी।फिर लगा, कोई पुराना पोस्ट तो नहीं पढ़ लिया मैंने..? अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली-एन सी आर में धरती हिलने की घटना हुई थी,जिसे भलिभाँति लोगों ने महसूस भी किया था। दुबारा से पुष्टि करने हेतु ज्योंहि मोबाईल से मुखातिब हुई कि फिर एक पोस्ट कौंधा…"हा हा हा..अप्रैल फूल मौसी"..साथ में जोरदार ठहाके मारता इमोजी भी आठ दस की संख्या में अवतरित हुआ।मेरे चेहरे पर अनायास ही मुस्कुराहट तैर गई.."धत् तेरे की..डरा ही दिया तुमने.."मैंने उसके जवाब में लिखा और वह दस साल का बच्चा मस्ती में झूम उठा।फिर उसने फिल्मी गाने पर खुशी से नाचता हुआ अपना एक वीडियो बनाकर मुझे भेजा-"अप्रैल फूल बनाया,तो उनको गुस्सा आया.." पीछे से उसकी माँ उसपर बिगड़ रही थी.."और कोई नहीं मिला तुमको,सुबह-सुबह मौसी को तंग कर रहा है…" वीडियो तो बंद हो गया परंतु बचपन की यादों का पैनडोरा बॉक्स खुल गया। बस,इसके बाद तो खुशनुमा यादों का एक हुजूम सा उमड़ आया। हम भी तो ऐसे ही करते थे न,जब छोटे थे।किसी को पेड़ पर न बैठा हुआ मोर दिखाते और जब उसे कुछ नहीं दिखाई देता तो कहते कि आँखें चेक कराओ ,दूर का तुम्हें दिखाई नहीं देता..और फिर जब वह ज्यादा परेशान होता तो अप्रैल फूल कहकर भाग खड़े होते....स्कूल के दोस्तों की मम्मियों को कहते कि आज अमुक विषय का क्लास टेस्ट है और जब उस बेचारे को मन मारकर पढ़ाई करायी जाती तो मन ही मन खुश हो लेते,उसे दिखा दिखाकर खेलते और वह बेचारा तरसकर रह जाता।बाद में जब सब शरारतें बड़ों के सामने आतीं और डाँट पड़ती तो अप्रैल फूल कहकर खिलखिला लेते।एक बार तो हद ही हो गयी।मेरी सहेली वसुधा का फोन आया कि आज मेरे छोटे भाई का बर्थडे है,शाम को केक काटेंगे और पार्टी करेंगे.....सारे दोस्तों को बुलाया है तो, चार बजे तक आ जाना।संयोग से तारीख पहली अप्रैल थी।हम सभी दोस्तों ने यही समझा कि शायद यह अप्रैल फूल बनाने की उसकी नयी तरकीब है। नतीजा यह हुआ कि कोई गया ही नहीं।वैसे भी वसुधा के घर इससे पहले जन्मदिन पर बस नये कपड़े खरीदने भर का रिवाज था।कभी केक काटने जैसा कुछ आयोजन उसके यहाँ होता नहीं था तो हम सबने अचानक आये इस पहली अप्रैल के निमंत्रण को मजाक ही समझा।उधर उसके घर में तैयारियों में कोई कमी नहीं थी।समोसे,चिप्स,छोले-पूरी,खीर,मिठाई सब कुछ का इंतजाम था।उन दिनों हमारे छुटपन में पिज्जा, बर्गर जैसे खाद्य पदार्थों का बिल्कुल भी चलन नहीं था,इसीलिए हमारे लिए चिप्स,केक और कोल्ड ड्रिंक का निमंत्रण ही बहुत था।लेकिन, सारे इंतजाम के बावजूद कोई आया नहीं।अब तो उसके छोटे भाई ने जो रोना शुरू किया कि क्या बताऊँ।यह उसका चौथा जन्मदिन था और रो-रोकर उसका हाल बेहाल था..आंटी भी परेशान थीं कि बच्चे आये क्यों नहीं?फिर जब समझ आया कि पहली अप्रैल की तारीख की वजह से सबने मजाक में लिया है इसीलिए नहीं आये हैं तो सबकी हँसी निकल गयी।फिर अंकल आंटी ने खुद फोन कर बच्चों से बात की, तब जाकर सबने सीरियसली लिया और बर्थडे मना। स्कूल-कॉलेज के दिनों में अपने दोस्तों और जानने वालों को इस दिन कई  अजीबोगरीब तरीकों के मजाकिया व्यवहार से छेड़कर मस्ती कर लिया करते थे।वैसे तो मजाक करने का कोई खास दिन नहीं होता,खुशमिजाज लोग हर समय हँसते, बोलते,मजाक करते रहते हैं परन्तु, यह इन्सानी जिंदादिली ही है कि जीवन को खुशनुमा बनाने,हँसने-हँसाने के लिए भी हमने एक खास दिन चुनकर रखा है।इसकी शुरुआत बरसों पहले चाहे जिस हालात में भी हुई हो,लेकिन यह दिन एक अजीब सा मनोरंजन लिए हमें मुश्किल हालातों में भी मुस्कुराने की कला तो सिखा ही देता है।इसीलिए मुस्कुरायें,कोरोना जा चुका है…अप्रैल फूल..😁🌷

                   ©अर्चना अनुप्रिया

182 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page