व्यथा की लहरों से निकलकर
खड़ा था नयनों के द्वार पे,
बंद थे पलकों के दरवाजे
था खुलने के इंतजार में..
टूटकर सपना बिखर गया था
ह्रदय में किसी आघात सा,
सब्र का बाँध भी टूट चुका था
बह चला था मैं जलप्रपात सा..
सुन ले जो करुणा की व्यथा
वो समय कब,किसके पास है?
घुट-घुट लहरों सा नाच रहा
अंदर जो व्यथित अहसास है..
करुणा की आहत तरंगों ने
सृजा है मुझे, दिया है जीवन,
दर्द बहा लाया नैनों तक
फिर बना दिया मुझे जल का कण..
अंदर जो तड़प और पीड़ा थी
मन, मस्तिष्क में छा गयी,
लिया सागर का अथाह जल
चुपचाप नैनों में आ गयी..
याद है मुझे, हँसी भी मुझको
मिलने सदा बुलाती थी,
निहारता था अपलक मैं उसको
खुशी गोद में ढलक जाती थी..
बड़ा ऋणी हूँ इन नयनों का
हमेशा साथ निभाते हैं,
सुख में हों या दुःख में हों
सदा ही मुझे बुलाते हैं..
धुंधली सी हो रही है दुनिया अब वेग आएगा जोरों से, मैं आँसू फिर सिसक-सिसक बह जाऊँगा दो कोरों से…।
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