“कौन तय करता है कि साल बदल गया?”
कुछ है जो चल रहा है हर पल
क्या है वो?
समय,जज्बात,धड़़कनें बेकल..?
कुछ है जो ढल रहा है हर पल
क्या है वो ?
उम्र,चाहत,जीवन,साँसें निश्छल..?
इस चलते,ढलते सिलसिले में भी
कुछ है जो शाश्वत है
क्या है वो?
उम्मीदें,तमन्नाएँ,ईश्वरत्व की मंजिल..?
समय एक अदृश्य शाश्वत सिलसिला है
ये सृष्टि के महासागर की लहरें हैं
बनती हैं,लुप्त होती हैं,फिर बनती हैं
शून्य से निकलकर लुप्त होती हैं शून्य में
एक गोल पहिये सी चलती रहती हैं..
एक लहर सागर की....भिगाकर चली गई ।
एक लहर हँसी की.....गुदगुदाकर चली गई।
एक लहर जज्बातों की...रुलाकर चली गईं।
एक लहर बुरे वक्त की….मिटाकर चली गई।
एक लहर लोकधर्म की…निभाकर चली गई।
एक लहर आशाओं की...लुभाकर चली गई।
अकेली मौन खड़ी जिंदगी,
चुपचाप जूझती रही,
सोचती रही--
“लहरों का सिलसिला
यूँ ही चलता है,
हर पल कोई गिरता है,
गिरकर फिर सँभलता है,
इन्हीं लहरों मेंं कोई डूबता है,
कहीं कोई तरता है..
जन्मों से बहती
इन लहरों पर
कोई वश नहीं है हमारा
कितनों को डुबोया इसने
कईयों को किया किनारा
भूत,वर्तमान, भविष्य-
सभी चलें इनके बलबूते
त्रेता,द्वापर, कलियुग-
कोई भी नहीं अछूते
राजतिलक के दिन राम को किया बनवास
कृष्ण पहुँचे थे गोकुल, तोड़कर कारावास
गाँधी जी की लहर ने सबको
देशभक्ति सिखला दी..
निर्भया की मौत ने जग को
नारी - शक्ति दिखला दी..
इन्हीं लहरों की थपेडों में
जिंदगी आगे चलती है..
मनुष्य जब कर्म करता है
तभी किस्मत बदलती है..
इसीलिए मत रुको कहीं
अपना कर्म करते जाओ..
लहरें लाख रोड़े अटकाएँ
तुम आगे बढ़ते जाओ..”
मन ही मन यह सोच जिंदगी
फिर आगे चल पड़ी
अपने कर्मों से सारे जग की
किस्मत बदलने निकल पड़ी
मन में ठान जो निकल पड़े
वह प्रेरणादायी चितवन है
जो रुके नहीं, चलता रहे
उसी का नाम तो जीवन है।
अर्चना अनुप्रिया।
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