सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में जाने की क्रिया संक्रांति कहलाती है और एक सक्रांति से दूसरी संक्रांति में जाने की अवधि को सौर-मास कहते हैं। वैसे तो सूर्य संक्रांति कुल बारह हैं,परंतु, चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं-- मेष, कर्क, तुला और मकर।ऐसा कहते हैं कि प्रति माह संक्रांति अलग-अलग वाहनों, वस्त्रों, शस्त्रों, भोज्य-पदार्थ आदि के साथ आती है।
सनातन धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है। इसका कारण यह है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। दक्षिणायण सूर्य उत्तरायण होने लगते हैं। कहा जाता है कि उत्तर दिशा देवताओं की दिशा है जबकि दक्षिण दिशा दानवों की दिशा है। जब तक सूर्य का झुकाव दक्षिण की ओर रहता है रातें या अंधकार बड़ी और प्रकाश या दिन छोटे होते हैं। लेकिन, सूर्य के उत्तर दिशा की ओर आते ही प्रकाशमय दिन बड़ा होता जाता है और अंधकारमय रात्रि छोटी... इसीलिए, धरती पर इस दिन का खास महत्व माना जाता है और मकर संक्रांति को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना भी कहा जाता है।
पुराण और विज्ञान दोनों ही दृष्टि से यह संक्रांति काफी महत्वपूर्ण है। सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़ा होने लगता है,मनुष्य की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। नदियों में वाष्पन की क्रिया आरंभ हो जाती है,जिससे कई तरह के रोग दूर होते हैं, इसीलिए, विज्ञान की दृष्टि से भी इस दिन नदियों में नहाने का विशेष महत्व है। अधिकांश स्थानों पर ठंड के मौसम की वजह से गर्म चीजों का सेवन जैसे तिल, गुड़ आदि सेहत की दृष्टि से लाभकारी होता है। चिकित्सा विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकारता है। गरम पदार्थों के सेवन से शरीर को ऊर्जा मिलती है और यह ऊर्जा शरीर की रक्षा करती है।
इस समय नई फसलें भी घर आती हैं, जिसकी वजह से कृषक का घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है जिसकी खुशियाँ दान पुण्य करके, तरह-तरह के व्यंजन बनाकर, पतंगबाजी करके हर किसान मनाता है।
आयुर्वेद के अनुसार सर्द हवाएँ कई बीमारियाँ ला सकती हैं, इसीलिए, खिचड़ी खाने का प्रचलन स्वास्थ्यवर्धक है और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल है। खिचड़ी से पाचन क्रिया सुचारू रूप से चलती है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है,जिससे बैक्टीरिया से लड़ने में मदद मिलती है और शरीर निरोग रह सकता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है जो आषाढ़ माह तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात्रि आरंभ होती है... अर्थात देवताओं का एक दिन और एक रात मनुष्य का एक वर्ष होता है। मनुष्य का एक माह पितरों का एक दिन कहलाता है। शुक्ल पक्ष उनके लिए दिन है जबकि कृष्ण पक्ष उनकी रात। 'गीता' में भी उत्तरायण के महत्व को बताया गया है। मान्यता है कि उत्तरायण के दौरान छह मास के शुभ काल में पृथ्वी प्रकाशमय रहती है। ऐसे समय में जो शरीर त्याग करते हैं,वे ब्रह्म को प्राप्त करते हैं और उन्हें दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता... यही कारण है कि भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर का परित्याग किया था।
मकर संक्रांति का यह पर्व पूरे भारतवर्ष में सूर्य की आराधना के पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह बात अलग है कि विभिन्न प्रांतों में इस पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं और विभिन्न तरीकों से बनाते हैं। लोहरी,बीहू,पोंगल - सभी मकर संक्रांति के ही विभिन्न रूप हैं। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करके तिल गुड़ खाने तथा सूर्य को अर्घ्य देकर दान देने का रिवाज है।मकर संक्रांति से शुष्कता कम होने लगती है और रोग तथा शोक मिटने लगते हैं। इसी दिन से सौर नववर्ष का आरंभ भी माना जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और रबी की फसल खेतों में लहलहा रही होती है। सरसों के पीले फूलों से खेत खिल उठते हैं।इसी समय गंगासागर में मेला भी लगता है। कहते हैं, मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। एक दूसरी कथा के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर एक महीने के लिए जाते हैं क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। इसके अतिरिक्त,किंवदंती यह है कि इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इस दृष्टि से यह नकारात्मकता की समाप्ति का दिन भी माना जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं,जबकि आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में संक्रांति ही कहते हैं।पोंगल चार दिनों का उत्सव होता है। इसमें स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है जिसे पोंगल कहते हैं और यह प्रसाद के रूप में खायी जाती है।राजस्थान में सुहागिनें अपनी सास को बयाना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं जबकि बंगाल में स्नान करके दान करने की प्रथा है।बिहार और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, तिल, गुड़ आदि दान करने और खाने की परंपरा है जबकि गुजरात में ऊँधियो,फाफड़ा,भजिए आदि खाते हुए पतंग उड़ाने का रिवाज है। महाराष्ट्र में सुहागिनें एक दूसरे को गुड़,रोली, तेल, हल्दी आदि बांटती हैं। हरियाणा, पंजाब जैसे प्रदेशों में एक दिन पूर्व संध्या पर आग जलाकर अग्नि देव की पूजा करने और सांझा चूल्हा बना कर इकट्ठे चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है।इस दिन मक्के और सरसों का लुत्फ उठाया जाता है और लोहड़ी मनाई जाती है।
धीरे-धीरे समय बदल रहा है और बदल रहा है मकर संक्रांति को मनाने का तरीका। अन्य त्योहारों की तरह अब इस त्योहार पर भी सोशल मीडिया पर बधाई संदेश देने का रिवाज चल पड़ा है। सुंदर बधाई कार्ड भेज कर और अपने-अपने घरों से पतंग उड़ाकर लोग इस परंपरागत पर्व को और अधिक प्रभावी बनाने की कोशिश में लगे हैं।
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अर्चना अनुप्रिया।
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