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Writer's pictureArchana Anupriya

"कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है.."


बज गई रणभेरी 

कुरुक्षेत्र का मैदान सजा था 

हाथों में गांडीव लिए अर्जुन 

पर मन दुविधा में पड़ा था-

"अपनों से ही जंग कैसा ?

दुश्मनी का ये रंग कैसा ?"

क्या स्वजनों से लड़ना जरूरी है?

योद्धाओं की ये कैसी मजबूरी है?


कृष्ण अर्जुन की दुविधा जान गए 

गीता के उन्होंने कुछ ज्ञान दिए 

फिर किया मुद्रा गंभीर 

कहने लगे-"सुनो वीर, 

कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है 

भले कोई भी मजबूरी है 

जब बुराई अच्छाई पर हावी हो 

अन्याय इंसानियत पर काफी हो 

सच पर झूठ भारी हो 

जुबान बन गई कटारी हो 

उम्र का कोई लिहाज न हो 

मर्यादा की कोई लाज न हो 

अधिकार तो हो पर कर्तव्य न हो 

नैतिकता जैसा कोई गंतव्य न हो 

ढोंग लोगों को गुमराह करें 

संबंध की जब न चाह रहे 

अपनापन खोकर अनाथ सी 

रोती जब धरती पूरी है 

तब पुनःसंबंध जीवंत करने को 

कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है...


दुर्योधन की जिद 

जब अत्याचार करने लगे 

पांडव घर से बेघर हों 

और शकुनि घर में राज करने लगे 

कुंती की दुर्दशा हो, 

फिर भी गांधारी की आंखें बंद रहे 

भीष्म का सम्मान आहत हो 

पर अपनी तलवार धृतराष्ट्र कुंद रखें 

अन्याय जब अहं के 

सिर चढ़कर बोलने लगे 

दुःशासन जब समाज के आगे 

नैतिकता का चीर खोलने लगे 

कौरव भले ही सैकड़ों हों

मत देखो तुम इन आंकड़ों को 

धर्म की राह पर चलते जाओ 

विघ्नों को पार कर खिलते जाओ 

जब लगने लगे कि यह दुनिया 

धर्म के बिना अधूरी है 

अधर्म का प्रतिकार करने के लिए 

कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है..


नीति धर्म के स्थापन के लिए 

मानव-समाज के जागरण के लिए 

स्वयं के शुद्ध आचरण के लिए 

नारी-उत्थान के कारण के लिए 

दबे मनुष्यों के तारण के लिए 

शुद्ध संस्कार के प्रसारण के लिए 

अंधेरों से लड़ना मजबूरी है 

कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है,

हाँ, कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है..

©अर्चना अनुप्रिया

सौजन्य.."और खामोशी बोल पड़ी"(काव्य-संग्रह)



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