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Writer's pictureArchana Anupriya

"गूगल के जमाने मेंं गुरु की प्रासंगिकता"




तकनीकी क्रांति से एक बड़ा बदलाव जो समाज में देखा जा रहा है वह है-- गूगल, वेबसाइट और विकिपीडिया पर मिलने वाले ज्ञान के अनंत भंडार। मोबाइल और कंप्यूटर के विभिन्न ऐप के जरिए हर विषय और हर तथ्य पर जानकारियाँ उपलब्ध कराने की कोशिश हो रही है, जो डिजिटल इंडिया की संकल्पना से दूर दराज के लोगों तक पहुँच रही है।ऐसे में जब अधिकांश लोगों को घर बैठे ज्ञान मिल पा रहा है तो क्या शिक्षक और विद्यालय का महत्व कम हो गया है या उनका दायित्व और अधिक बढ़ गया है? इस पर विचार करने की जरूरत है।


इस विषय पर चर्चा करने के लिए मैं यह बता दूँ कि मेरे पास आसपास के 8-10 बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। कुछ महीने पहले की बात है कि उन्हें मैंने गणतंत्र दिवस के ऊपर निबंध लिखने को कहा। सभी ने गूगल पर सर्च किया और जो जानकारी मिली उसे हूबहू उतार कर लिख दिया। जब मैंने सभी की कॉपियों में एक सी ही लाइनें देखी तब मैंने उनसे पूछा कि निबंध में तो सभी ने बड़ा ही अच्छा लिखा है तो क्या सब ने गूगल से उतारा है? दो-तीन बच्चों को छोड़कर सब ने इंकार कर दिया। कोई कहने लगा कि मैंने अपने मामा से पूछा था... कोई बड़ी दीदी का नाम बताने लगा... फिर मैंने उनसे पूछना शुरू किया कि गणतंत्र दिवस के विषय में पाँच-पाँच पंक्तियाँ बताओ। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने यह पाया कि उनमें से कोई भी गणतंत्र दिवस के विषय में ठीक तरह से बता ही नहीं पा रहा था, जबकि ज्यादातर बच्चे पांचवी कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक के थे।जब मैंने उन्हें विस्तार से समझाया और गणतंत्र दिवस की पृष्ठभूमि भी बतायी,तब सभी बच्चे कहने लगे कि ऐसे तो उन्होंने कभी पढ़ा ही नहीं।उनके जाने के बाद मेरे मन में महत्वपूर्ण प्रश्न ये उठे कि यह गूगल क्या कभी गुरु का स्थान ले सकता है..? क्या गूगल के जमाने में शिक्षकों, गुरुओं की प्रासंगिकता नहीं रही..?महज ज्ञान के नाम पर जानकारियाँ प्राप्त कर लेने से बच्चों के व्यक्तित्व का निखार हो पाएगा क्या..?


भारतीय संस्कृति में जीवन विकास के लिए शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है।उन्हें परम आदरणीय और पूज्य माना गया है।"आचार्य देवो भव:" का स्पष्ट अनुदेश भारत की पुनीत परंपरा है और वेद आदि ग्रंथों का अनुपम आदेश है। हमारे यहाँ आरंभ से ही गुरु-शिष्य परंपरा देखी गई है। परंतु, हाल के दिनों में परिस्थितियाँ बदल रही हैं। एक दौर था,जब जीवन शिक्षकों के ही भरोसे था। विभिन्न विषयों के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षकों की जरूरत होती थी,परंतु, आज के दौर में यह हो गया है कि हम सभी गूगल के भरोसे होने लगे हैं। गुरु हमें अच्छा बनाने के लिए प्रेरित करते हैं तो गूगल इससे संबंधित कई तरीके बता देता है;शिक्षक ने विज्ञान के नियम सिखाये तो गूगल ने बताया कि दैनिक जीवन में विज्ञान कैसे हमें प्रभावित करता है।लेकिन, यहाँ सोचने वाली बात यह भी है कि गूगल पर मिली जानकारियाँ विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि शायद कर भी दें परन्तु, उनके अंदर संवेदनशीलता, नैतिकता, मौलिकता, नि:स्वार्थ की भावना, सत्य का आत्मविश्वास कैसे पैदा होगा,जो किसी के भी व्यक्तित्व को निखारने और सकारात्मक बनाने के लिए अत्यंत जरूरी है..?

गुरु का सानिध्य,उनका संस्कार, उनका तेज शिष्यों पर अमिट छाप छोड़ते हैं,जो भविष्य में उन्हें एक अच्छा इंसान बनने में मदद करते हैं। गूगल की ई-लर्निंग बहुत उत्तम है परन्त,हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जानकारी मशीनी है, जबकि गुरु की सीख उनके अनुभवों और संस्कारों पर आधारित है, जो हमें अच्छा आदर्श इंसान बनाती है।मशीनी जानकारियों से ज्ञान जरूर पड़ता है पर इंसानियत नहीं सीख सकते। उदाहरण के लिए, बहुत सी माताएँ इतनी पढ़ी-लिखी नहीं होती पर उनकी शिक्षा, उनके संस्कार और उनके अनुभव व्यक्ति को उच्च शिखर तक पहुँचाने की क्षमता रखते हैं,जबकि गूगल से ज्ञान प्राप्त कर लेना पर संस्कारों से हीन होना व्यक्ति को समाज में लज्जित कर सकता है।

इसीलिए, इतना तो तय है कि गूगल ज्ञान भले ही बाँट ले पर प्रत्यक्ष गुरू की शिक्षा का विकल्प नहीं कहा जा सकता।बढ़ती तकनीक और बदलते शिक्षण माहौल में यह भी जरूरी है कि गुरु स्वयं को अपने-अपने क्षेत्रों में विकसित करते रहें क्योंकि जब छात्र की जिज्ञासा का उचित समाधान गुरु नहीं कर पाता तब गुरू के प्रति आदर और विश्वास कम होने लगता है।

आजकल भौतिक शिक्षा एक व्यवसाय बन गया है तथा शिक्षक एक व्यापारी बनता जा रहा है।ऐसे में, इनसे सद्गुरु की तरह के व्यवहार की उम्मीद कैसे की जा सकती है?जाहिर है,इनके द्वारा शिक्षित छात्रों से अनुशासन की उम्मीद भी गलत ही है। जब भी छात्र उद्दंडता, अनुशासन हीनता, असह्य व्यवहार आदि का प्रदर्शन करता है तो हम छात्रों के साथ साथ शिक्षक तथा माता पिता भी को कोसते हैं। जबकि वास्तव में न इसके लिए छात्र जिम्मेवार हैं न ही शिक्षक, बल्कि इसके लिए बदलती परिस्थितियाँ और अभिभावक ही जिम्मेवारी माने जाने चाहियें क्योंकि

हम अपने बच्चे को शिक्षा केवल सरकारी नौकरी, अच्छा व्यापारी, उद्योगपति, अभियंता, डायरेक्टर आदि बनने के लिए दिलाते हैं न कि एक अच्छा मानव बनने के लिए। परिणामस्वरूप,हम बच्चे का दाखिला वैसे संस्थान में दिलाते हैं जहाँ उन्हें अच्छी भौतिक शिक्षा मिले न कि आदर्श शिक्षा। अब आप ही बताइए, जिस व्यक्ति ने स्वयं ही भौतिक शिक्षा प्राप्त नहीं की हो,वह व्यक्ति हमारे बच्चों को कहाँ से आदर्श शिक्षा दे सकेगा? हमारे समाज में भौतिक शिक्षा प्राप्त किए हुए व्यक्ति को उच्चतम दर्जा दिया जाता है और आज वही हमारा आदर्श भी बन गया है।हमें चाहिए था कि बच्चों को भौतिक शिक्षा के साथ-साथ आदर्श शिक्षा भी दी जाए। भौतिकता के साथ-साथ हमें आध्यात्मिकता को भी अपनाना चाहिए ताकि हमारे जीवन में संतुलन बना रहे। जब हम ऐसा करेंगे तो हमारे समाज में संतुलन होगा और सामाजिक संस्कार बदलेगा।यह कार्य तो केवल एक आदर्श शिक्षक या गुरू ही कर सकता है न कि मशीनी गूगल।

देखा जाए, तो आज गुरु और गूगल दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।दोनों एक दूसरे के उपयोग से ज्यादा अच्छी तरह से छात्रों को मदद कर सकते हैं।पहले जानकारियों के लिए गुरु और शिष्य दोनों को पुस्तकालयों में जाना पड़ता था या अन्य साधनों,किताबों आदि के द्वारा ढूंढना पड़ता था जिसमें काफी समय भी चला जाता था और कई बार जानकारियाँ पूरी तरह से उपलब्ध भी नहीं हो पाती थीं।अब जानकारियाँ तो गूगल पर बहुत उपलब्ध हैं पर उनमें से कितने काम की हैं और उन्हें कैसे उपयोग करना है, यह तो गुरु ही बता सकता है।कौन सी जानकारी सही है, किसी विषय विशेष के लिए जरूरी है,किस तरह से वह काम आ सकती है-ये सारी बात़ें गुरू ही समझा सकता है। इससे दोनों का समय भी बचेगा और छात्र तेजी से विकास कर पाएँगे ।इसीलिए महत्व तो गूगल और गुरू-दोनों का ही है परंतु, जानकारियाँ,उनके उपयोग, उनके व्यवहारिक जीवन में परख, उपयोग की विधि आदि के विषय में सटीक ज्ञान गुरू के बिना संभव ही नहीं है ।इसीलिए आज गुरु का महत्व और उनके दायित्व का दायरा और भी बढ़ जाता है।बस जरूरत है गुरु और शिष्य के आपसी तालमेल और आपसी विश्वास की।

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