जीवन और साहित्य का अटूट संबंध है। साहित्यकार अपने जीवन में जो दुख, अवसाद, कटुता,स्नेह,प्रेम, वात्सल्य, दया आदि का अनुभव करता है, उन्हें ही अपने साहित्य में उतारता है।उन्नत साहित्य जीवन के प्रबंधन को वे नैतिक मूल्य प्रदान करते हैं, जो मनुष्य को उत्थान की ओर ले जाते हैं।
जीवन गतिशीलता का नाम है।जीवन का प्रबंधन इस ढंग से होना चाहिए कि हर परिवर्तन, हर नए प्रयोग को वह आत्मसात कर ले तभी जीवन का निर्वाह सुचारू रूप से संभव है।इस दिशा में साहित्य मनुष्य की बहुत मदद कर सकता है। साहित्य मनुष्य की भावनात्मक उपज है, मस्तिष्क और मन की खुराक है। अपनी भावनाओं के लेखन पठन द्वारा उद्गार व्यक्त करने की क्रिया मनुष्य को अन्य जीवों से भिन्न करती है। अपने आसपास मानव जो भी अच्छा-बुरा या पाप-पुण्य देखता है, साहित्य उन्हीं मानसिक संवेदनाओं का लिखित रूप है। ये संवेदनाएँ जीवन प्रबंधन के हर छोटे बड़े आयाम से जुड़ी होती हैं।
कहते हैं कि कलम तलवार से अधिक ताकतवर होती है और यह सार्वभौमिक रूप से सत्य है। यह जन-चेतना को झकझोरती है और जीवन प्रबंधन को पूर्णतया परिवर्तित करने की क्षमता रखती है। व्यक्ति यदि नैराश्य में डूब रहा हो तो साहित्य उसे उबारकर नया जीवन प्रदान कर सकता है।इतिहास में ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं, जब उत्साहवर्धन हेतु कवि, गायक या साहित्यकार को दायित्व दिया जाता था। साहित्यकारों ने ही अपनी ओजपूर्ण कविताओं से गांधी जी के नेतृत्व में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन में नवीन चेतना जगाई थी। दुष्यंत कुमार, सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवियों की रचनाओं ने युग परिवर्तन में बहुत सहयोग दिया।
जीवन के सर्वांगीण विकास एवं मनुष्य के चरित्र निर्माण में अच्छे साहित्य की बड़ी अहम भूमिका है।स्वयं की पहचान के लिए व्यक्ति को साहित्य का अध्ययन मनन करना चाहिए,तभी वह आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकता है। जीवन सिर्फ खाना पीना नहीं है।यह एक आनंद का नाम है जो स्थायी है और धन तथा विलासिता से प्राप्त होने वाले आनंद से बहुत ऊपर की चीज है।साहित्य का काम है निर्माण करना विध्वंस करना नहीं।प्रेमचंद कहते हैं,"साहित्य का आधार जीवन है,इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारिया, मीनार और गुम्बंद बनते हैं।…साहित्य ही मनोविकारों के रहस्यों को खोलकर सद्वृत्तियों को जगाता है। साहित्य मस्तिष्क की वस्तु नहीं, बल्कि ह्रदय की वस्तु है। जहाँ ज्ञान और उपदेश असफल हो जाते हैं, वहाँ साहित्य बाज़ी मार ले जाता है। साहित्य वह जादू की लकड़ी है, जो पशुओं में,ईट पत्थरों में,पेड़ पौधों में विश्व की आत्मा का दर्शन करा देता हे।"
साहित्य का जीवन शैली पर सीधा प्रभाव पड़ता है। मानव-समाज की कुरीतियों, अनैतिकता, व्यभिचार, अराजकता आदि को साहित्य कुशल चित्रकार की भांति जीवन के समक्ष प्रस्तुत करता है और साथ ही उनके समाधान हेतु मार्गदर्शन भी करता है। वस्तुतः साहित्य जीवन के प्रबंधन में एक ऐसी जान फूँक सकता है जो समस्त परिस्थितियों और वातावरण के मूल को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है।परंतु, यह भी जरूरी है कि साहित्य स्वस्थ हो और ज्ञानवर्धक हो। नकारात्मकता यदि साहित्य का हिस्सा बनी तो जीवन के प्रबंधन को तहस-नहस होने में देर नहीं लगेगी। इसीलिए, जीवन में साहित्य की भूमिका को स्वीकारते हुए हमें मानव-जीवन के स्वस्थ और सुदृढ़ प्रबंधन हेतु स्वस्थ साहित्य में लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करना चाहिए।साहित्य वह जादू है जो निर्जीवता में भी सकारात्मकता की आत्मा का दर्शन कराता है और ईश्वरीय शक्ति से मानव जीवन को एकाकार कर देता है।
साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं मार्गदर्शक भी है । एक साहित्यकार समाज की वास्तविक तस्वीर को सदैव अपने साहित्य में उतारता रहा है और समस्याओं का हल निकालकर समाज को एक नयी दिशा देने की कोशिश करता रहा है।मानव-जीवन समाज का ही एक अंग है ।
मनुष्य ही परस्पर मिलकर समाज की रचना करते हैं । इस प्रकार समाज और मानव जीवन का संबंध भी अभिन्न है । समाज और जीवन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं । आदिकाल के वैदिक ग्रंथों व उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्य ने मनुष्य जीवन को सदैव ही प्रभावित किया है ।
दूसरे शब्दों में, किसी भी काल के साहित्य के अध्ययन से हम तत्कालीन मानव जीवन के रहन-सहन व अन्य गतिविधियों का सहज ही अध्ययन कर सकते हैं या उसके विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के उत्थान व चारित्रिक विकास में मदद कर सकता है तथा एक भटकते समाज को सही रास्ता दिखाने में सदैव सहायक होता है ।
साहित्य से व्यक्ति का मस्तिष्क तो मजबूत होता ही है, साथ ही साथ, वह उन नैतिक गुणों को भी जीवन में उतार सकता है, जो उसे महानता की ओर ले जाते हैं । यह साहित्य की ही अद्भुत व महान शक्ति ही है, जिससे समय-समय पर मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते रहे हैं ।जीवन और साहित्य को पृथक् नहीं किया जा सकता । उन्नत साहित्य जीवन को नैतिक मूल्य प्रदान करते हैं,समाज की व्यवस्था तथा राजनीति की सकारात्मक दिशा तय करते हैं और उन्हें उत्थान की ओर ले जाते हैं । साहित्य के विकास की कहानी वास्तविक रूप में मानव सभ्यता के विकास की ही गाथा है ।जब हमारा देश अंग्रेजी सत्ता का गुलाम था तब साहित्यकारों की लेखनी की ओजस्विता राष्ट्र के पूर्व गौरव और वर्तमान दुर्दशा पर केंद्रित थी । इस दृष्टि से साहित्य का महत्व वर्तमान में भी बना हुआ है । आज के साहित्यकार वर्तमान भारत की समस्याओं को अपनी रचनाओं में पर्याप्त स्थान दे रहे हैं और व्यक्ति तथा समाज के जीवन-प्रबंधन में नित नयी ऊर्जा का संचार कर रहे हैं।इसीलिए, व्यक्ति हो या समाज- साहित्य की भूमिका हर जीवन-प्रबंधन के लिए प्राणवायु की तरह है।
©अर्चना अनुप्रिया।
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