ढलती हुई
साँझ का आकाश
कितना रंगीन
और सुंदर लगता है
तो फिर..
ढलती उम्र की आहट
बुरी क्यों लगती है..?
अधूरे सपने और
अनंत अधूरे अहसास
पूरे करने को
जगती है आस
तो फिर..
ढलती उम्र की आहट
बुरी क्यों लगती है..?
सभी जिम्मेदारियों से
मुक्त होकर अपने शौक
और मन के हिसाब से
मस्ती करने की
अधूरी प्यास छलकती है
तो फिर..
ढलती उम्र की आहट
बुरी क्यों लगती है..?
अँधेरी रात के बाद ही
तो सुनहरा सवेरा आता है
इसी उम्र का समय
जिंदगी जीने का
मतलब समझाता है
तो फिर..
ढलती उम्र की आहट
बुरी क्यों लगती है..?
सुख-दुःख तो
सत्य है जीवन का
इससे परे हटकर
खुशहाल जीवन जिओ
फिर देखो..
जिंदगी कितनी
खूबसूरत लगती है
एक समय के बाद
तन का थकना
तो नियति है ही
मन नहीं थकने दो
फिर देखो..
ढलती उम्र की आहट
कभी बुरी लगती है क्या?
© अर्चना अनुप्रिया.🌹
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