दोस्तों की तो बात न पूछो,
दूर भी हैं और साथ भी..
जब भी चाहे उन्हें बुला लो
यादें भी हैं,जज्बात भी..
आँखें अगर जो बंद करो तो
गुजरा हुआ पल पास है,
सुनहरी यादें भरी हैं जिसमें
मदमस्ती का अहसास है..
वो कीमती पल संजो कर रखो
वही तो अपना खजाना है
दुनिया चाहे छूट भी जाये
यारों से प्यार निभाना है..
©अर्चना अनुप्रिया
"बिछड़े साथी"
अचानक से किसी हसीं मोड़ पर,
मिल गए कुछ दोस्त पुराने,
जिंदगी भर गई उमंगों से और
लौट आए फिर भूले अफसाने...
कॉलेज, पढ़ाई, कैंटीन, बदमाशियाँ-
बौछारें थीं जज्बातों की,
लगे सुनाने सभी किस्से, कहानियाँ,
उड़ गई नींदें सबकी रातों की...
एक से एक अनुभव थे सबके,
कभी तो स्वागत, कभी करें खिंचाई,
पर एक ही बंधन था-दोस्ती का,
बीच में कभी न नफरत आई...
एक सी बीती सबकी दुनिया,
नौकरी, गृहस्थी, बच्चे, कर्तव्य,
रास्ते भले ही जुदा-जुदा थे,
खुशियाँ ही थीं, सबका मंतव्य...
बड़े दिनों के बाद मिले जब,
बदल गए थे सबके चेहरे,
बरसों जूझे दुनियादारी से,
पर,मंद न थीं मित्रता की लहरें...
बन चुके थे दादी-नानी पर,
हिम्मत, हौसला कम कहाँ था?
अर्धशतक के पार पहुँचकर भी,
बुजुर्ग होने का गम कहाँ था..?
अजीब फलसफा है कुदरत का,
बीती जिंदगी फिर दोहराती है,
शरीर की उम्र ज्यों-ज्यों बढ़ती है,
मन की उम्र घटती जाती है...
चलो,जीवन की आपाधापी में,
बाँट लें हम कुछ फुरसत के क्षण,
सबके बच्चों की खुशियों के संग,
फिर बच्चा कर लें अपना जीवन...।
©
अर्चना अनुप्रिया।
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