साड़ी की तहों के बीच,
एक खत पुराना मिला…
यादों के दरवाजे खोल कर,
वो गुजरा हुआ जमाना मिला…
बिखर गए मोती बीते लम्हों के,
उन्हीं में वह खोया दिल दीवाना मिला…
बचपन की मस्ती और अल्हड़पन के बीच,
रंगीन गुब्बारों का उड़ाना मिला…
कुछ दोस्तों की खुशबू फैल गई,
फिर बात-बात पर हँसना-मुस्कुराना मिला…
टेढ़े-मेढ़े मासूम अक्षरों के बीच,
अटका हुआ वो प्यारा दोस्ताना मिला…
फैली सी स्याही और भीगे हुए शब्दों में,
भीग कर वो बरसात में नहाना मिला..
वो सारे बिछड़े खुशनुमा लम्हें
और, वो जादुई वक्त मस्ताना मिला…
फटे से धूमिल लिफाफे में मुझे,
मत पूछ कि क्या क्या खजाना मिला..।
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