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Writer's pictureArchana Anupriya

"फुटपाथ की दीपावली"


नगर को दीप सजा रहे थे 

प्रकाश अमावस को लजा रहे थे..

 

सभी दुकानें भरी पड़ी थीं

हर तरफ रौशनी की लड़ी थी..

 

लोग मस्ती में झूम रहे थे 

एक-दूजे संग घूम रहे थे..

 

तभी कुछ बच्चे दिखे फुटपाथ पर 

अकेले ही लगे,थे सभी साथ मगर..

 

अपलक दुकानें निहार रहे थे 

आंखों से मानो पुकार रहे थे..

 

सपने भरे थे पर पेट थे खाली 

नैयनों से मना रहे थे दिवाली..

 

रॉकेट,बम,फुलझड़ी,अनार 

उन्हें दूर से देते खुशियाँ हजार..


आकाश में छूटते रंगीन नजारे 

भुला रहे थे उनके दुख सारे..

 

उछल-उछल वे नाच रहे थे 

कुछ गिरे पटाखे जांच रहे थे..

 

एक उनमें से टॉफी ले आया 

बांट-बांट फिर सभी ने खाया..

 

मिठास में घुल गया उनका जहाँ 

था खाने को कुछ और कहाँ?..

 

फिर भी मगन हो गा रहे थे 

लक्ष्मी को जीना सिखा रहे थे..

 

हतप्रभ सी मैं खड़ी रही थी 

मेरी हैरान आंखों में नमी थी..

 

समाज पर गुस्सा फूट रहा था 

इस खाई से दिल टूट रहा था..

 

चाहा रौशन करूँ रात यह काली 

खुशियों से भर दूँ उनकी दिवाली..

 

पास जा उनके,मेरी दुनिया बदल गई

उन्हें साथ ले मैं बाजार निकल गई..

                  अर्चना अनुप्रिया

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