यह कौन रोता है रात भर
रोशनी के बिछोह में
पत्ते-पत्ते पर फिसलते हैं आँसू
शबनम का रूप लिए
सारी धरा भर जाती है
दर्द की असंख्य बूँदों से...
क्यों आवारा घूमता है चाँद
अपनी चांदनी के वियोग में
पल-पल बुझता जाता है
मृतप्राय होता है अमावस की रात
फिर आती है आशा की किरण
और विरह का अमावस
पा लेता है पूनम,प्रेम की चांदनी...
क्या पुकारती है कृष्ण की बांसुरी
राधा से विरह के क्षणों में
प्रेम की पीड़ा, विरह की वेदना
आत्मा से जुड़ा अधूरा प्रेम
बांसुरी के सुर ताल में बसी राधा
और भी मधुर कर देती है
कान्हा की बंसी की तान...
हर प्रेम को अमर कर देती है
यह विरह की पीड़ा
बिछोह के दर्द की करुणा
बना देती है हर प्रेमी को "मीरा"...
© अर्चना अनुप्रिया।
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