कोशिश तो बहुत की थी
कोहरों ने रंगीनियाँ मिटाने की..
अकेले सूरज ने उनके इरादे
बिखेर दिए शबनम की तरह..
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बेमौसम बरसात तो बरस कर चली गई..
रह गई आखिरी बूँद तारों पर टँगी अकेली..
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मैं तुम पर मर मिटा..
तब सही में जी सका..
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चेहरा एक है पर नजरें अलग..
कोई खफा है तो कोई फिदा है..
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सिर झुका हो सजदे में पर दिल में दगा हो...
ऐसी इबादत से भला खुश कैसे खुदा हो...
.......©अर्चना अनुप्रिया।
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