मेरी कलम की नोंक
जब शब्दों का जहान रचती है
लिपट जाते हैं
जज्बात, अहसास, तजुर्बे
बोलने लगती हैं
गजलें, शायरियाँ,कहानियाँ
सजने लगती हैं
वादियाँ, कल्पनाएँ, ख्वाहिशें
झरना सा फूट पड़ता है
प्यार का,संस्कार का,सच्चाई का
शब्द गाने लगते हैं
गीत, नगमें,बोल, लोक रचनाएँ
और रौशन हो जाता है
एक नया जहाँ, जहाँ
भावनाओं के सिवा कुछ भी नहीं..
- अर्चना अनुप्रिया
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