आजकल महिलाओं के प्रति किए जघन्य अपराध आए दिन सामने आ रहे हैं। एक तरफ तो चिंता की बात है, दूसरी तरफ यह सुकून भी है कि महिलाएँ पहले की तरह शर्म और लोक लाज की आड़ में अपने खिलाफ किए गए अत्याचार को छुपा नहीं रहीं बल्कि खुलकर सामने आ रही हैं और न्याय के लिए लड़ रही हैं।महिला सुरक्षा की दिशा में यह एक बड़ा ही सकारात्मक कदम है। महिलाएँ युगों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती आ रही हैं। इस दिशा में बुद्धिजीवियों और सरकार के बीच सतत चर्चा जारी है।परन्तु,अब समस्या की चर्चा की बजाय उसके समाधान की चर्चा ज्यादा होनी चाहिए।कुछ ठोस कदम जो मेरे हिसाब से उठाए जाने जरूरी हैं, इस प्रकार हैं--
महिला हेल्पलाइन -
जिसमें निडर होकर 24 घंटे कॉल करने और सूचना मिलते ही त्वरित कार्यवाही करने की व्यवस्था होनी चाहिए,साथ ही एक महिला डेस्क हो, जो तुरंत न्याय कर दोषियों को फौरन सजा सुना सके।
सोशल मीडिया में सावधानी -
फिल्मों,इंटरनेट और टीवी चैनलों से अश्लील साईट हटाये जाने चाहिए। आजकल जो बच्चों के चैनलों पर भी व्यस्कों वाले ऐड दिखाए जा रहे हैं। कार्टूनों में लव अफेयर, फिल्मों में डॉयलाग और हरकतें, इंटरनेट पर अश्लील वीडियो बड़ी आसानी से मानसिकता को विकृत कर देते हैं,इसीलिए इन सब चीजों पर सेंसर बोर्ड का ध्यान जाना चाहिए।सोच और संस्कार का भोजन आँखों के द्वारा ही मिलता है। क्या हम अच्छी चीजें दिखाकर बचपन से ही बच्चों की मानसिकता को सकारात्मक नहीं बना सकते..? इस विषय पर सोचने की जरूरत है।
महिला पुलिस दस्ता
महिला का ऐसा पुलिस दस्ता बनना चाहिए, जो जगह-जगह पेट्रोलिंग और लड़कियों की सहायता के लिए तत्पर रहें। स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल,पार्क,मार्केट क्षेत्र और आफिस- जहाँ भी आज औरतों की संख्या बढ़ रही है, वहाँ महिला पुलिस दस्ता विद्यमान होना चाहिए।
सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग
लड़कियों को बचपन से ही सेल्फ डिफेंस सिखाना जरूरी है ताकि छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए वे स्वयं को हमेशा तैयार रखें।लड़कियों की आत्मरक्षा की ट्रेनिंग पर जोर देते हुए विद्यालयों में एक पीरियड इसके लिए अनिवार्य कर देनी चाहिए, जिसमें लड़कियों को अपनी सुरक्षा करने के तरीके बताए जाएँ और उनमें आत्मविश्वास की वृद्धि हो।
परिवार परामर्श केंद्र
ऐसे कई केंद्र बने तो हैं पर उनकी भूमिकाएँ त्वरित नहीं होने के कारण पीड़िता वहाँ जाने से कतराती हैं। ऐसे केंद्र को समस्या सुलझाने के अतिरिक्त परिवार में लड़के लड़कियों की सही परवरिश के लिए सलाह मशविरा भी देने चाहिए,ताकि परिवार का माहौल शांतिपूर्ण और सकारात्मक हो,बच्चों में भी सकारात्मकता बढ़े तथा वे महिलाओं का सम्मान करना सीखें।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार
नयी पीढ़ी को सही दिशा देने के लिए शिक्षा-व्यवस्था में परिवर्तन लाना जरूरी है। इसके लिए नैतिक मूल्यों को समझाना,महान आदर्श लोगों से सीख लेना,विचार सकारात्मक बननेवाले विषय शामिल करना जैसे कदम जरूरी हैं।जन संवाद तथा समय-समय पर वर्कशॉप आदि करके बच्चों में जागृति लायी जा सकती है।
उपाय तो कई हो सकते हैं,जरूरी है उन्हें अमल में लाना। महिला सुरक्षा के लिए जहाँ पुलिस, प्रशासन, सरकार की सतर्कता जरूरी है, वहीं घर, परिवार, मुहल्ला,शहर और पूरे समाज को भी जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने की जरूरत है। विकृत मानसिकता को केवल सरकार नहीं बदल सकती, संस्कार बदलना भी जरूरी है।स्त्रियों को भी अपने स्त्री होने का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए।अक्सर ऐसी भी घटनाएँ देखने में आती हैं,जहाँ स्त्रियाँ अपने स्त्री होने का नाजायज फायदा उठाती हैं। पुरुष हमेशा खराब नहीं होते, विकृत मानसिकता से वही हमारी रक्षा भी करते हैं, इसीलिए, सबको एक होकर विकृतियों को समाज और संस्कार से हटाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।चुनावों में महिला सुरक्षा का दावा करने वाली सरकारों को लगातार महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराध को लेकर एक हद तक जिम्मेदार जरूर ठहराया जा सकता है। साथ ही, उनसे सवाल पूछा जा सकता है कि ऐसे अपराधों को रोकने के लिए उन्होंने ठोस कदम के तौर पर क्या फैसले लिए या उन्हें कैसे अमल में लाया।लेकिन, इन सबसे जरूरी है महिला सुरक्षा और महिला सम्मान को लेकर समाज की मानसिकता को बदलना और शुरुआत अपने घर, अपने स्कूल और अपने दफ्तर से करना, जहाँ आज भी महिलाएँ अपने खिलाफ भद्दी मानसिकता से ग्रस्त लोगों से त्रस्त रहती हैं। क्या हम अपने घर में पुरुषों को और नव युवकों को यह सिखाते हैं कि वह समाज में लड़कियों और महिलाओं से कैसा बर्ताव करें? क्या हम अपने दफ्तर में पुरुषों के बीच यह नजरिया बनाने की कोशिश करते हैं कि वह साथी कर्मचारियों को किस भावना से देखें? क्या हम अपने इर्द-गिर्द समाज में महिलाओं को सम्मान और उनकी सुरक्षा को लेकर एक बड़ी भूमिका और चर्चा के लिए तैयार हैं?सच तो यह है कि देश में महिला को सम्मान और सुरक्षा तभी मिलेगी जब उसकी शुरुआत हम अपने घर से करेंगे।महिलाओं के खिलाफ अपराध में कानून का काम अपराध घटने के बाद आता है।कानून अपराध के बाद अपराधियों पर कार्यवाही कर सकता है, लेकिन अपराध को रोक नहीं सकता। इसलिए भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उनकी स्थिति को लेकर सर्वे करने की बजाए इस पर चिंता करके कुछ मौलिक कदम उठाने की जरूरत है।
© अर्चना अनुप्रिया।
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