“मिथिला के पहुना..श्री राम जी”
दुनिया में जहाँ कहीं भी सनातनी धर्मावलंबी हैं,वहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की पूजा होती है लेकिन, बिहार में मिथिला एक ऐसा क्षेत्र है जहां के लोग श्री राम को जमकर गाली देते हैं।यहां उन्हें गाली देने की प्रथा सदियों पुरानी है। ऐसा नहीं है कि यहां के लोग राम को भगवान नहीं मानते या उनकी पूजा नहीं करते बल्कि, मिथिला के घर-घर में राम पूजे जाते हैं और वह वहां की संस्कृति में पूर्णरूपेण रचे बसे हैं क्योंकि श्री राम मिथिला के दामाद हैं, मिथिलावासियों के पाहुन हैं और इसीलिए पाहुन के तौर पर उनके साथ हँसी-ठिठोली भी कर लेते हैं। शादी से संबंधित कोई भी रस्म हो महिलाएं उनके नाम से गाली जरूर गाती हैं।मर्यादा पुरुषोत्तम राम समस्त संसार के लिए भगवान हैं परन्तु, मिथिलावासियों के लिए वह भगवान होने से ज्यादा उनके पाहुन जी हैं अर्थात् दामाद हैं।मिथिला में दामाद को पाहुन कहा जाता है।रामचन्द्र जी के साथ मिथिला के राजा जनक की बेटी, सीता का विवाह हुआ था,इसीलिए समस्त मिथिलावासी रामचंद्र जी को पाहुन जानकर उनसे हँसी ठिठोली करने का यहाँ तक कि उन्हें गाली देने तक का अधिकार रखते हैं।देसी वैवाहिक परंपरा के अनुसार जब बारात आती है तो लड़की पक्ष वाले लड़के पक्ष वालों के साथ छेड़छाड़ करते हुए वैवाहिक गीत में उन्हें उलाहना स्वरूप गालियाँ गाकर हँसी ठिठोली करते हैं।मिथिलावासियों के लिए राम उनकी बेटी,सीता को ब्याहकर ले जाते हैं,इसीलिए वह सबके अति प्रिय पाहुन हैं।
दुनिया का राम से आस्था का रिश्ता है,अयोध्या का राम से संबंध उनके जन्म के कारण है,लेकिन मिथिला से राम का रिश्ता पवित्र प्रेम का है।वह समस्त विश्व के लिए जगत्पिता और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, लेकिन मिथिला के लिए वह आज भी सबसे प्रिय पाहुन हैं।त्रेतायुग के राम जब सीता से विवाह करने मिथिला नगरी आये थे,तब सभी महिलाओं ने पुलकित नजरों से राम को अपनाया था।आज भी मिथिला की सभी बुजुर्ग महिलाएं सीता की माँ,सुनयना की भाँति ही स्नेह भरी नजरों से राम को उसी धनुर्धारी तेजस्वी बालक के रूप में देखती हैं।उनके लिए राम आज भी दामाद हैं और हमेशा रहेंगे।मिथिला की बेटियाँ आज भी उसी तरह हँस सकती हैं और राम लक्ष्मण का मजाक बना सकती हैं, जैसे त्रेतायुग में वहाँ की लड़कियां क्रोधित लक्ष्मण को देखकर हँसती थीं।वे दोनों आज भी उनके लिए पाहुन और पाहुन के भाई हैं।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी राम और सीता के विवाह का वर्णन करते हुए कहते हैं..
जेंवत देहि मधुर धुनि गारी,
लै लै नाम पुरुष अरु नारि।।
अर्थात् मिथिला की नारियाँ राजा जनक के आँगन
में बैठकर राजा दशरथ के परिवार वालों का नाम
ले लेकर गारी गा रही हैं।देखा जाये, तो इन पँक्तियों में रिश्तों की खूबसूरती निखरकर आती है।पौरुष से भरपूर, अत्यंत बलशाली राजा दशरथ भगवान राम के पिता नहीं, उनके समधी हैं और मुस्कुराते हुए गालियाँ सुनकर आनंदित हो रहे हैं।यह वर्णन अपनेआप में संबंध की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।समधियाने में गाली सुनकर कोई भौंह नहीं सिकोड़ता,क्रोधित नहीं होता,वरन् सभी मुस्कुराते हैं।यह आश्चर्यजनक है किंतु भावनाओं से भरा विह्वल करने वाला दृश्य है।राजकुमार राम और सम्राट दशरथ मिथिला वासियों के लिए राजपरिवार होने से ज्यादा सम्बंधी हैं।
यही सहजता वहाँ की संस्कृति के मूल में है।राम और सीता के विवाह के अनेक युग बीत जाने बाद भी जब संत रामभद्राचार्य जी महाराज हाल के दिनों में अयोध्या से जनकपुर गये तो महिलाओं ने उनका वैसे ही स्वागत किया जैसे जनकपुर की महिलाओं ने राजा दशरथ के साथ किया होगा।प्रेम की पराकाष्ठा ऐसी है कि राम और उनके परिवार वालों को गाली तक देने का अधिकार केवल उनके ससुराल वालों को है।
कुछ वर्ष पहले तक मिथिला के बुजुर्ग अयोध्या में पानी पीने से भी परहेज करते थे क्योंकि प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार बेटी के ससुराल में खाने पीने से मायकेवाले परहेज करते थे।सीता तो उनकी सबसे प्यारी बेटी हैं तो उनके ससुराल में वे कैसे खा पी सकते थे।हजारों पीढियां आयीं और चली गयीं परन्तु, सीता आज भी मिथिला की सर्वप्रिय बेटी है।स्वयं जगत के स्वामी,श्री राम मिथिला वालों के लिए पुत्र सरीखे हैं।उनके लिए राम उनके विस्तृत परिवार का हिस्सा हैं, देवता नहीं।मिथिलावासी उनका मजाक उड़ा सकते हैं, या मीठी मीठी गालियाँ भी दे सकते हैं।राम के प्रति ऐसी अद्भुत भावनाओं पर उनका एकाधिकार है।
“मिथिला का कण-कण खिला,
जमाई राजा राम मिला..
मिथिला नगरिया निहाल सखियां,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां..”
की धुन से बिहार और विशेषकर मिथिला के विवाहोत्सव आज भी गूँज उठते हैं।
रस्मों के अनुसार जब दामाद का घर तैयार हो जाता है तब उनकी ससुराल से भार अर्थात् तोहफा आता है।प्रभु राम अपने भव्य महल में विराजमान होने जा रहे हैं।ऐसे में उनके ससुराल वाले मिथिला के लोग जनकपुर से तोहफे लेकर अयोध्या पहुँच रहे हैं।उनकी ससुराल से आये भार में विभिन्न प्रकार के पकवान और आभूषण शामिल हैं।वहाँ की प्रसिद्ध वस्तुयें,इसके अलावा कपड़े और तरह- तरह के पाँच हजार से भी अधिक उपहार शामिल हैं।प्रसिद्ध ठेकुआ,पीड़िकिया,मखाना,पान आदि शामिल हैं।रास्ते में कहीं रंगोली बनायी गयी है तो कहीं पुष्प वर्षा की जा रही है।हर कोई अपने-अपने तरीके से अपने पाहुन को सौगात भेज रहा है।मिथिलावासियों को भगवान राम के रूप में दामाद पाने का गौरव प्राप्त है।तभी तो यहाँ आज भी हर दूल्हे में राम की छवि देखी जाती है और कन्या में सीता का रूप देखा जाता है।
मिथिलावासियों का मानना है कि यह जगत जननी माँ सीता का प्रताप ही है कि राम एक राजा नहीं वरन भगवान के रूप में पूजे जाते हैं क्योंकि उनकी बेटी ने अनेक कष्ट सहकर भी पतिव्रत का पालन किया और अपनी तपस्या से राम की शक्ति में बल भर दिया।मिथिला नगरी में मनाये जाने वाले त्योहारों की श्रृंखला में मार्गशीर्ष माह में मनाये जाने वाले विवाहपंचमी का भी विशेष महत्त्व है।मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान राम और सीता का विवाह तय हुआ था।तभी से इस पंचमी को “विवाहपंचमी” के रूप में भव्यता के साथ मनाया जाता है।
संपूर्ण मिथिला के लोग राम के भक्त हैं। श्रीराम जब मिथिला में आए तब सारे मिथिलावासी अपना कार्य छोड़कर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़े।भगवान राम की शादी मिथिला में होने के कारण यहां दामाद के उत्कृष्ट सत्कार की प्रथा है।दामाद को राम के सदृश और बेटी को सीता के सदृश सम्मान है। इन्हें अतिथियों में अतिविशिष्ट स्थान हासिल है। मिथिला में छप्पन भोग का वास्तविक स्वरूप दामाद के भोजन के दौरान ही दिखता है।मिथिलांचल में दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश के संग राम व सीता की भी पूजा की जाती है। होली के अवसर पर फाग गायन में मिथिला में ‘राम खेलत होली’..जैसी गीतों का खूब प्रचलन है।मिथिला के प्रसिद्ध मधुबनी पेंटिंग में भी राम और सीता से संबंधित विभिन्न दृश्यों की बहुलता रहती है। विवाह के अवसर पर नवदम्पत्ति को सीता और राम की जोड़ी की संज्ञा दी जाती है।राम में जहाँ स्वयंवर के धनुष भंग की वीरता देखी जाती, है वहीं दामाद के रूप में उनकी धीरता परिलक्षित होती है।संपूर्ण मिथिला के लोग राम के भक्त हैं। श्रीराम जब मिथिला में आए तब सारे मिथिलावासी अपना कार्य छोड़कर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़े।गोस्वामी जी ने भी लिखा है कि –‘धाए धाम काम सब त्यागी मनहु रंक निधि लूटन लागी।’वहां के लोग इस तरह दौड़ पड़े जैसे कोई रंक खजाना लूटने के लिए दौड़ पड़े। वहीं, युवतियां झरोखे से राम का दर्शन करने लगीं। गोस्वामी जी ने अपनी चैपाई में लिखा है कि – युवती भवन झरोखन लागी। निरखहीं राम रूप अनुरागी।
मिथिला के लोगों ने राम को हमेशा मनमोहक रूप में देखा,जिसे देखने के लिए समस्त देवगण लालायित रहते हैं।कोई भी व्यक्ति अपनी शादी में सबसे खूबसूरत दिखता है।भगवान राम का सबसे सुंदर रूप मिथिला में तब देखा गया था,जब वह दूल्हा बने थे।उनके इस रूप को देखने के लिए भगवान इंद्र को अपनी हजार आँखें खोलनी पड़ी थीं,सूरज को रुकना पड़ा था और शिव भगवान को पार्वती माँ के साथ साक्षात् आना पड़ा था।दुर्भाग्यवश अयोध्या से उन्हें बनवास मिला परन्तु, मिथिलावासियों ने हमेशा श्रीराम को सिर माथे पर रखा।उनके लिए राम विस्तृत परिवार का हिस्सा हैं,महज भगवान नहीं।ऐसे अद्भुत संबंध की सादगी और मधुरता से स्वयं भगवान भी ओतप्रोत हैं और स्वयं को दामाद के इस लाड़ दुलार से बाँधे रखकर हम मिथिलावासियों को कृतार्थ कर रहे हैं।
…..अर्चना अनुप्रिया
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