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Writer's pictureArchana Anupriya

रील की बीमारी, रीयल जीवन पर भारी "

“रील की बीमारी,रीयल जीवन पर भारी" 


अभी हाल के दिनों में शिक्षक दिवस के अवसर पर एक अजीब सा वीडियो वायरल हो गया। किसी शिशु विद्यालय में शिक्षक दिवस के दौरान आदरणीय राधाकृष्णन की फोटो के सामने छोटी-छोटी बालिकाएं हाल के किसी फिल्म के गाने पर अश्लील नृत्य को हू-ब-हू नृत्य करके शिक्षक दिवस को सेलिब्रेट कर रही थीं। मजे की बात यह कि सामने दर्शक दीर्घा में बैठे शिक्षक- शिक्षिकाएं और माता-पिता हर्ष व उल्लास से तालियां बजा रहे थे। छोटे बच्चों का हौसला बढ़ाने के लिए तालियां बजाने की बात तक तो ठीक है परंतु, समय और आयोजन को देखते हुए इस तरह का अश्लील प्रदर्शन कतई भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए था।शिक्षक दिवस एक पावन दिवस है और सबके लिए,खासकर विद्यार्थियों के लिए पूज्य और आदर्श स्थापना का दिवस है।ऐसे में प्रतिभा दिखाने और मनोरंजन के नाम पर बाजारू गाने पर बच्चों द्वारा अश्लील नृत्य भारतीय संस्कृति का हनन ही नहीं,देश की संस्कृति से खिलवाड़ ही है। छोटे बच्चों को ऐसा करते देखकर इतना गुस्सा आ रहा था कि क्या बताएं। शिक्षक दिवस पर जहां बच्चों को महान और आदर्शवादी लोगों की जीवनी या उनके सिद्धांतों से प्रेरित कार्यक्रम करने चाहिए थे वहां बॉलीवुड के अश्लील शब्दों वाले गानों और नृत्य का प्रदर्शन हो रहा है और वह भी अभिभावकों और शिक्षकों के समक्ष। पता नहीं क्यों युवा और बच्चे रील के हीरो को रियल लाइफ के हीरो मान लेते हैं और उनकी नकल में सही-गलत हर कार्य करने के को तत्पर रहते हैं। एक समय था,जब समाज के महान लोगों पर और नैतिक मूल्यों पर फिल्में बनती थीं और मनोरंजन के द्वारा फिल्में कुछ सकारात्मक सीख दिया करती थीं परंतु, धीरे-धीरे मनोरंजन का दायरा बड़ा और नकारात्मक होता गया और नैतिक मूल्य गौण होते गए और अब तो ऐसा समय आ चुका है जब नैतिक मूल्य और आदर्शवादी चरित्र बिल्कुल ही समाप्त से होते दिखाई दे रहे हैं। फिल्मी नायक नायिकाओं की ऊल-जुलूल हरकतें और डायलॉग युवा वर्ग की जीवन शैली बनकर उनके संस्कारों  में ढलती जा रही हैं। इस आग में घी डालने का काम कर रहा है सोशल मीडिया पर बढ़ता रील्स बनाने का शौक।क्या बड़े क्या छोटे और क्या युवा- जिसे देखो, रील बना बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहा है।वायरल होना तो मानो एक फैशन सा हो गया है।कुछ काम की बातें हों या जरूरी जानकारियां हों तो फिर भी बात समझ में आती है परंतु, फिल्मी नायक नायिकाओं की अजीबोगरीब नकल, अश्लील डायलॉग और अश्लील कपड़ों में बेतुकी हरकतें किसी नशे की तरह सबको अपनी गिरफ्त में लिए जा रही हैं और लोग पूरी तरह से उसमें डूबे नजर आते हैं एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन हर भारतीय रोज 40 मिनट रील देखता है। देश की मौजूदा रील इंडस्ट्री करीब 45000 करोड़ रुपए की है। 2030 तक इस इंडस्ट्री के एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। 2019 से 2023 के बीच यह रील इंडस्ट्री का ग्रोथ 32 फ़ीसदी तक बढ़ा है। रील शूट करने के लिए अश्लील और खतरनाक काम करना अब तो जैसे हर दिन की बात बनती जा रही है। रील्स बनाने के चक्कर में आम या खास लोग हर तरह की खतरनाक क्रियाएं भी कर गुजरते हैं कि उनकी जान पर भी बन जाती है।रील बनाने का जुनून ऐसा है कि नौजवान पीढ़ी किसी भी हद तक की क्रिया कर गुजरने के लिए तैयार दिख रही है। रील के लाइक्स के चक्कर में कोई मृत्यु को छूकर लौट रहा है तो कोई जीते जी अपना जीवन दांव पर लगा रहा है। अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी दूसरों की देखा-देखी में और पैसे कमाने की लालच में ऊलूल-जुलूल रील बनाने और उसकी लाइक्स, सब्सक्राइब के चक्कर में पड़े हुए दिख रहे हैं। कुछ पुराने जमाने की नायिकाएं और नायक भी इस दौड़ में शामिल दिखाई देते हैं। कुछ तो अश्लील और अजीबोगरीब कपड़ों में अपना अंग प्रदर्शन कर रील बनाकर नाम और पैसा कमाने में लगे हुए हैं।कईयों ने तो नैतिकता की सीमा-रेखा ही तोड़ दी है और कैमरे को अपने शयन कक्ष तक पहुंचाकर लोगों को आकर्षित करने में लगे हैं।ये रील्स की बीमारी और वायरल होने का बुखार इन दिनों समाज को पूरी तरह से अपनी चपेट में लिए हुए हैं।रील्स शूट करने के लिए खतरनाक काम करना या फिर मौत को गले लगा लेना अब रोज की बात बनती जा रही है। आये दिन ऐसी तस्वीरें या वीडियो सामने आते हैं, जिसमें रील्स शूट करते हुए लोग कुछ इतना खतरनाक काम करने लगते हैं कि उनकी जान भी चली जाती है। रील्स बनाने के चक्कर में लोग और खास कर नौजवान किसी भी हद से आगे निकल जाने को तैयार हैं।ऐसी ही एक रिपोर्ट भी छपी है कि इस मामले पर  सर्वे 13 फीसदी ब्रिटिश और 6 फीसदी अमेरिकी टीनेजर्स पर किया गया।रिपोर्ट के मुताबिक इंस्टाग्राम का इ्स्तेमाल करने वाली तीन में से एक लड़की को बॉडी इमेज से जुड़ी परेशानियां होने लगी हैं। हालांकि इंस्टाग्राम ने कहा है कि इस सर्वे का सैंपल साइज काफी छोटा था लेकिन, उसमें जो युवाओं पर आने वाली दिक्कतों की बातें कही गई हैं, उनका अध्ययन किया जा रहा है।भारत में भी बिहार के मधुबनी जिले में रील्स का शौक किसी की जान पर भारी पड़ गया, जब लोडेड पिस्टल से रील बनाने के दौरान गोली चलने से 12 साल के बच्चे की मौत हो गई और उसके दोनों दोस्त भाग गए। पुलिस मामले की जांच में जुटी है।इस तरह की घटनाएं अब ज्यादा सामने आने लगी हैं।


आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया का प्रभाव जीवन के हर पहलू में दिखाई देता है, खासकर युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा असर पड़ रहा है। रील लाइफ और रियल लाइफ की तुलना से युवा अपने आत्मसम्मान और मानसिक संतुलन को खोने लगे हैं।साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि सोशल मीडिया के चलते बच्चों और युवाओं में सामाजिक दिखावे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहाँ बच्चे अपने माता-पिता से अनावश्यक वस्तुओं की मांग करते हुए खाना-पीना छोड़ देते हैं। अभिभावक, बच्चों की इस ज़िद के आगे मजबूर होकर उनकी मांगें पूरी कर रहे हैं।कितनी बार तो अभिभावक खुद भी बच्चों के साथ रील्स बनाने की होड़ में शामिल रहते हैं और परिवार का अहित कर लेते हैं।उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में रील बनाने के चक्कर में एक पूरा परिवार खत्म हो गया। पति-पत्नी अपने तीन साल के बेटे को साथ लेकर रेलवे ट्रैक के पास रील बना रहे थे। इस दौरान ट्रेन से कटकर तीनों की मौत हो गई।इस बढ़ते शौक की वजह से बच्चे और उनके अभिभावक हर गलत सही कदम उठाने लगते हैं ।डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा करने से बच्चों में यह विश्वास पनपता है कि उनकी हर मांग पूरी होगी, जो भविष्य में उनके व्यवहार में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की हर मांग को पूरा करने की बजाय उन्हें सही और गलत का महत्व समझाएं। मानसिक तनाव का कारण बन रही लाइक्स की होड़ और रील लाइफ की तुलना से युवाओं का आत्मसम्मान लगातार प्रभावित हो रहा है। सोशल मीडिया की दुनिया में परफेक्ट दिखने की होड़ में जब उनकी पोस्ट्स को वांछित प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो वे निराश हो जाते हैं। इसका सीधा असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ता है, जिससे वे और ज्यादा सोशल मीडिया पर सक्रिय हो जाते हैं और इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस समस्या से निपटने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों को मिलकर युवाओं को वास्तविक जीवन के महत्व का एहसास कराना चाहिए।


सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट करना और उन पर मिलने वाले लाइक्स की संख्या को लेकर चिंता करना आज युवाओं के बीच मानसिक तनाव का प्रमुख कारण बन चुका है। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल यादव के 

अनुसार, खासकर टीनएजर्स इस दौर में पहचान और स्वीकृति की तलाश में होते हैं, और जब उनकी पोस्ट्स को उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो वे खुद को दूसरों से कमतर महसूस करने लगते हैं। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे उनके आत्मसम्मान पर गहरा असर डालती है।सोशल मीडिया का दुरुपयोग केवल ट्रोलिंग के रूप में ही नहीं हो रहा है, एक बड़ी समस्या यह है कि सोशल मीडिया के जरिए वैमनस्य के साथ झूठी खबरें फैलाने का काम भी किया जा रहा है। कई बार तो यह काम सुनियोजित तरीके से किया जाता है और इसी क्रम में जनमत को भी प्रभावित करने की कोशिश की जाती है।सच-झूठ,सही-गलत कुछ भी मनोरंजन के नाम पर समाज के सामने परोसा जा रहा है।उस पर से तुर्रा यह कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस द्वारा अजीबोगरीब वीडियो बनाकर या ऊटपटांग राजनीतिक, धार्मिक राय देकर लोगों को गुमराह करना बहुत आसान हो गया है।चेहरा किसी का, बातें कुछ भी.. अफवाहों का फैलाव आसान हो गया है और लोग अक्सर धोखा खा रहे हैं।इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के मंचों की रील वाली दुनिया युवाओं को भी सपनों के रील में उलझाए हुए है। अब युवाओं के भीतर धैर्य, परिश्रम जैसे गुणों का लोप होता दिखाई दे रहा है। यह सब खुली आंखों से सपने देखने के कारण हो रहा है। सपने ऐसे, जिनकी हकीकत बनने की चाह तो है, लेकिन उसके लिए समर्पित होकर कार्य करने की क्षमता नहीं है, न ही उस क्षमता को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।रील बनाने की चाह और सोशल मीडिया की भेड़ चाल गृहस्थी में रमे हुए मध्यवर्ग के दंपती के सपने भी उसे अपने भार से दबाए जा रहे हैं। अच्छा मकान, बड़ी गाड़ी, देशाटन, बैंक में पैसे के सपनों ने अवसाद को आमंत्रित कर दिया है। सीमित संसाधनों के साथ ये सब सपने खुली आंखों से देखे जा रहे हैं। फिर जब ये सब हकीकत में नहीं बदलता तो पारिवारिक कलह सामने आती है। इससे परिवार में टूटन और बिखराव देखने को मिल रहा है। इस सबसे बच्चों में अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कुछ दंपती यह सब प्राप्त करने के लिए ऋण लेकर घी पीने वाली प्रवृत्ति को अपनाते हैं। जो कुछ समय के लिए सुखद अहसास तो देता है, लेकिन उसके परिणाम सदैव सुखद नहीं होते। आज बड़े-बड़े महानगरों में रहने वाले युवा दंपती अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करने की प्रवृत्ति रख रहे हैं। मासिक किस्त और ऋण के दम पर सारे शौक पूरे किए जा रहे हैं।


हमारे पूर्वजों ने जो जीवन पद्धति हमें विरासत में दी, हमने उसको जीवन में आत्मसात नहीं किया। हमने उसे भुलाकर सिर्फ उपभोग के पीछे भागते रहने का सिद्धांत अपना लिया। आज हम आत्मनियंत्रण जैसे विचारों को छोड़ चुके हैं। जब हम आत्मनियांत्रित होकर कार्य करेंगे तो निश्चित ही सारे संकटों से बचे रहेंगे। सपनों की अप्रतिम शाखाओं में झूलने का मन सभी का करता है, लेकिन उन शाखाओं में इतना भार न पड़े कि वे टूटकर बिखर जाने लगें और हम कोई गलत कदम उठा बैठें। जीवन में सपनों की अति से बचना अति आवश्यक है। इच्छाओं के अप्रतिम विस्तार से बचना चाहिए। चाह की भूख कभी खत्म नहीं होती। प्रतिपल बढ़ती ही जाती है।सपनों की अति के पीछे भागना एक ऐसी दौड़ है जो कभी खत्म नहीं होती, बल्कि बढ़ती ही चली जाती है। बिना लक्ष्य के अप्रतिम आकांक्षाओं के साथ भगाना कहां की बुद्धिमत्ता है? आज के इस दौर में रील वाले सपनों के मकड़जाल में महानगर से लेकर गांव, कस्बों तक के लोग फंसे हुए हैं, जो इससे बाहर निकलने का उपक्रम नहीं कर पाते। जीवन में लक्ष्य बड़े होने आवश्यक हैं, लेकिन जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है। उस विचार का अनुगमन करना भी आवश्यक है,अन्यथा हम स्वयं ही कलह, विषाद, बेचैनी और अवसाद को आमंत्रित कर बैठेंगे। जीवन की राह में सपनों का अनियंत्रित हो जाना दुर्घटना को आमंत्रित करने जैसा है।इस दौर में हर आयु वर्ग के लोगों को जीवन की रफ्तार को थोड़ा-सा विराम देकर विचार करने की जरूरत है। यह बेवजह की रील- रफ्तार हमसे हमारा सुकून छीन रही है। हमारे भीतर अनेक तरह के विकारों को जन्म दे रही है। इन विकारों का मर्दन संयमित और सकारात्मक जीवनचर्या से ही संभव है। इस दौर में आत्मवालोकन की जरूरत सबसे ज्यादा है। बेवजह के सपनों के बोझ तले जीवन के उमंग और आनंद को दबने देने से बचाना होगा।रील और रियल जीवन के अंतर को समझते हुए मनोरंजन के नाम पर अनियमित अनियंत्रित होड़ से बचना होगा। मनोरंजन जरूरी है,पर सादा जीवन और उच्च विचार ज्यादा जरूरी है।समाज को अवांछित तत्वों से बचाना और उच्च चेतना की तरफ अग्रसर करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।

                    ©अर्चना अनुप्रिया 






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