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Writer's pictureArchana Anupriya

"लिव इन रिलेशनशिप"

प्यार का बंधन

प्रैक्टिकल हो गया..

नये जमाने के

अनुरूप ढल गया..

संवेदनाएँ निराकार हुई अब

जरूरतें ही आधार हुईं अब..

बस दो शरीर हैं रहते साथ

नहीं कोई आत्मा वाली बात..

न कोई कानून का बंधन

न प्रेम से बँधा होता अंतर्मन..

अहसास तो है,

विश्वास नहीं है..

मशीनी हुआ मानव

अब श्वास नहीं है..

न चाहत अंदर,न जिम्मेदारी

सहमी,दबी सी है रूह बेचारी..

रिश्ता तो बस खेल वहाँ है

दिलों का सच्चा मेल कहाँ है?..

न आपसी अधिकार,न कोई रोक-टोक

खत्म हो गई पति-पत्नी की प्यारी नोंक-झोंक..

न है कोई मायका, न कोई ससुराल

बच्चे हों तो कहाँ जायें? -सबसे बड़ा सवाल..

अजीब सा रिश्ता है- ये'लिव इन'

जब तक मतलब, तभी तक इसके दिन..

हमारी संस्कृति में प्यार का मान है '

'मतलब का रिश्ता' तो पश्चिमी योगदान है..

औरों की भला हम नकल करें क्यों?

ताक पर अपनी अक्ल धरें क्यों?..

माना कि बंधन मूर्खता है

पर ये कैसी सभ्यता है?..

जरूरी है खुला विचार रखना

पर चाहिए कुछ तो सदाचार रखना..

अधिकार के साथ जब कर्तव्य होगा

तभी तो सुख भी गंतव्य होगा..

हम इंसान हैं, जानवर नहीं हैं

मनु और पशु में तो अंतर ही यही है..

आजादी अच्छी जब आपसी बंधन हो

प्यार सच्चा जब आत्मिक मिलन हो..

मन के बंधन की नीति अपनायें

हम सुदृढ़ अपनी संस्कृति बनायें...

©अर्चना अनुप्रिया











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