हनुमान जयंती के अवसर पर न्यूज चैनलों को खंगालते हुए जब हिंसात्मक,विवादास्पद और नकारात्मक समाचार दिखने लगे तो एक प्रश्न अनायास ही मन में उठा कि इस कलियुग की तकनीकी दुनिया में हनुमान भगवान की भक्ति से हम क्या-क्या सीख सकते हैं?कितने प्रासंगिक हैं वह आज के युग में हमारे लिए..?मन में इस प्रश्न के उठते ही मानो मन ने ही स्वयं उत्तर भी देना आरंभ कर दिया और फिर,वह जिस नतीजे पर पहुँचा,उससे यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि हनुमानजी हर वर्ग,जाति,धर्म से ऊपर उठकर एक ऐसी मर्यादा और विश्वास का व्यक्तिकरण हैं, जो इन्सान,इन्सानियत और इन्सानी समाज की स्थापना और संवहन के लिए अपरिहार्य है।वे सभी गुण,जो हनुमानजी के अंदर हैं,मनुष्य जाति को ईश्वरत्व की ओर ले जाते हैं,जहाँ हम अपने अंदर के राम को जगाकर परमसुख की प्राप्ति कर सकते हैं।
शक्ति, ज्ञान, भक्ति एवं विजय के भगवान, नकारात्मकता के सर्वोच्च विध्वंसक और राम भक्तों के परम रक्षक, श्री हनुमान जी को बजरंगबली के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर वज्र का है और यह पवन पुत्र या मारुतिनंदन अर्थात वायु के पुत्र के रूप में माने गए हैं।हनुमान जी के जन्मस्थान को लेकर कई अलग-अलग दावे हैं परंतु, यह तय है कि हनुमानजी को रुद्रावतार माना जाता है। माता अंजना और पिता केसरी के पुत्र,हनुमानजी शिवजी के ग्यारहवें रुद्र के अवतार माने जाते हैं। एक कथा के अनुसार इंद्र के वज्र से हनुमान जी की ठुड्डी टूट गई थी इसीलिए उन्हें हनुमान नाम दिया गया। वैसे इनके अनेक नाम हैं.. जैसे, केसरी नंदन, कपीश, महावीर,आंजनेय आदि। हिंदू संस्कृति के अनुसार हनुमानजी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलि पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। शरीर से अत्यंत मांसल एवं बलशाली हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है।मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभूषण धारण किए हनुमान जी चिरंजीवी हैं और उनका मुख्य अस्त्र गदा है। हनुमान जी को कलियुग का देवता कहा जाता है,जो अपने भक्तों के हर संकट को हर लेते हैं। वह कलियुग में जागृत और साक्षात शक्ति हैं, जिनके समक्ष कोई मायावी शक्ति नहीं टिक पाती है। ऐसा माना जाता है कि जहां भी भगवान राम की पूजा होती है या रामायण का पाठ होता है, वहां रामभक्त हनुमान किसी न किसी रूप में अवश्य पहुंचते हैं।
साधारण मनुष्यों के लिए हनुमान भगवान की सबसे बड़ी प्रासंगिकता यह है कि वह अति बलशाली,ज्ञान और गुण के महासागर, रिद्धि सिद्धि के ज्ञाता होते हुए भी अति विनम्र और नतमस्तक रहते हैं। आज जब जरा सी शक्ति, थोड़ा सा ज्ञान और छोटा सा ओहदा भी मनुष्य को अहंकारी बना देते हैं, हनुमानजी अतुलित बल के स्वामी होते हुए भी भक्ति, शक्ति, मुक्ति, युक्ति, अर्पण,समर्पण तथा एकनिष्ठ भक्ति के पर्याय बन कर हमारे सामने उभरते हैं।'रामचरितमानस' का 'सुंदरकांड', 'हनुमान चालीसा', 'हनुमान बाहुक' जैसी कृतियाँ हनुमान जी के भक्ति भरे अदम्य बलशाली चरित्र को दर्शाती हैं। हनुमान जी का चरित्र-वर्णन हमें बताता है कि उच्च शिक्षा और सही शिक्षा अथवा सुशिक्षा में क्या अंतर है..। शिक्षित तो रावण भी कम नहीं था परंतु, जहाँ उसकी विद्वता उसे अहंकारी,धृष्ट और अकड़वान बना रही थी, वहीं हनुमान जी की सुशिक्षा उन्हें विनम्र, मृदुभाषी,भक्त और नतमस्तक बना रही थी। बलवान रावण जहां अपने बल का नकारात्मक प्रयोग कर अत्याचारी बना हुआ था, स्त्री सुरक्षा और मर्यादा के लिए हानिकारक था,वहीं परमवीर, महावीर हनुमान जी, जिनके नाम के बोलने मात्र से तीनों लोक कांप उठते हैं, विनम्रतापूर्वक सीता जी को ढूंढने निकलते हैं और लंका पहुंचकर पहले रावण से हाथ जोड़कर सीता जी को वापस करने की विनती करते हैं और बाद में रावण के अहंकार को अपनी शक्ति दिखाते हैं। हनुमानजी चाहते तो अकेले ही लंका का विध्वंस कर सकते थे,सीता को वापस लेकर आ सकते थे परंतु, महावीर ज्ञानी और विद्यावान हनुमान जी ने ऐसा नहीं किया। विनम्र और मर्यादापरक हनुमानजी ने अपने स्वामी,श्रीराम के वचन की मर्यादा रखी और सीता माता का पता लगाया तथा शत्रु की शक्ति का परीक्षण किया। बलशाली होते हुए भी ब्रह्मास्त्र से बंध गए और नम्रतापूर्वक रावण को सीताजी को वापस भेज देने की नसीहत दी। जब रावण ने अपने बल का घमंड दिखा कर उन्हें बांधा और उनकी पूँछ जलाने की आज्ञा दी तब उन्होंने लंका जलाकर न केवल अपने स्वामी की शक्ति का एहसास कराया वरन एक कुशल दूत की भांति रावण की शक्ति और उसके अस्त्रों-शस्त्रों का भी पता लगा लिया।उनकी विद्वता ने ही समुद्र लाँघकर लंका जाते समय जहाँ अति विशाल रूप धारण किया,वहीं सुरसा से बचने के लिए उसके मुख में जाते समय खुद को अति लघु कर लिया।कहाँ स्वयं को बड़ा करना है और कहाँ खुद को नगण्य कर देना है यह ज्ञान तो हनुमान जैसे ज्ञानी ही दे सकते हैं।आज जब शिक्षा व्यवस्था को लेकर चर्चा होती है तब हनुमानजी के चरित्र से सुशिक्षा और उच्च शिक्षा के अंतर को भलीभाँति समझा जाना चाहिए। उनका कृत्य बताता है कि जहां विनम्रता और भक्ति होगी वहां क्या बड़ा होना और क्या छोटा होना..? सरलता उनके अंदर इस कदर है कि अपनी परम शक्ति का भान तक नहीं है उन्हें। उनकी शक्ति उन्हें याद दिलाई गई। भले ही एक कथा के अनुसार उन्हें भूल जाने का श्राप था परंतु, बाल-चंचलता के अतिरिक्त कभी भी किसी भी कथा में उन्हें अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए नहीं दिखाया गया है।
हनुमान जी ने कभी किसी काम को 'न' नहीं कहा, चाहे वह सीता की खोज हो या रातोंरात संजीवनी बूटी लेकर आने के बात हो। लंका से सुदूर उत्तर दिशा जाकर सुबह होने से पहले संजीवनी लाना लगभग असंभव सा कार्य था। परंतु, हनुमान जी ने स्वयं आगे आकर इस कार्य की स्वीकृति दी और वहाँ पहुँकर जब संजीवनी की पहचान नहीं कर पाये तो पहाड़ ही उखाड़ लाये।लेकिन,लक्ष्य पूरा करके ही छोड़ा।यह सचमुच सीखने की बात है कि कार्य की दुरूहता पर जब हम सब निराशा से घिर जाते हैं, हिम्मत हार बैठते हैं और कार्य करने से मुख मोड़ लेते हैं..ऐसे में, हमें युक्तिपूर्वक कैसे काम करना है,यह हनुमानजी से सीखनी चाहिए। उनका यह चरित्र हमें कुशल और सकारात्मक व्यक्तित्व के गुण सिखाता है ।उनका समर्पण हमें विनम्रता की पराकाष्ठा से परिचित कराता है।हर असंभव कार्य जो उन्होंने किया उसका श्रेय हमेशा अपने स्वामी श्री राम को दिया। कभी यह नहीं कहा कि यह कार्य मैंने किया है। उनके चरित्र में "मैं" शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है कभी। हर बार उन्होंने राम कृपा को ही कार्य पूर्ण करने का कारण बताया जबकि वह स्वयं इतने बलशाली हैं कि उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। यह सचमुच सीखने की बात है। आज हम देखते हैं कि छोटी सी सफलता का श्रेय लेने के लिए मनुष्यों में होड़ सी लग जाती है। कोई बड़ा या छोटा काम सफल हो जाये तो उसका श्रेय और वाहवाही लेने के लिए इंसानों में, बड़ी-बड़ी कंपनियों में प्रतिस्पर्धा सी लग जाती है। ऐसे में हनुमान जी से निःस्वार्थ, कुशल, सकारात्मक भावनाएँ अवश्य सीखी जानी चाहिए।
अक्सर जब इंसान प्रयास के बाद वांछित फल नहीं पाता है तो वह हिम्मत हार जाता है परंतु, हनुमान जी ने यह जानते हुए कि रावण ने शिव को, काल को जीत लिया है, परम ज्ञानी है, बलशाली है.. अकेले लंका में पहुंच गए और पराकाष्ठा यह कि अपनी मर्यादा भी नहीं त्यागी। न राम जी को खुश करने के लिए जबरन सीता जी को लेकर आए, न ही ब्रह्मास्त्र चलाये जाने पर उसका काट किया..वरन् एक साधारण चरित्र की तरह मर्यादा निभाते हुए ब्रह्मास्त्र से बंध गए। जब भी स्वामी पर कोई समस्या आई, हनुमान जी ने स्वेच्छा से आगे आकर अपनी सेवा दी… चाहे वह सीता की खोज की बात हो या संजीवनी बूटी लाने की बात हो.. हर चुनौती को स्वीकार करने और सकारात्मक रूप से उसे पूरा करने की उनकी प्रवृत्ति हमें उत्तरदायित्व का भान कराती है।हर परिस्थिति में स्वयं को स्थिरचित्त और प्रसन्नचित्त रखते हुए अपनी सकारात्मक बुद्धि से समस्या के निदान में लग जाना हनुमान जी से सीखा जाना चाहिए।
'रामचरितमानस' में हर चरित्र किसी न किसी बात से या तो दुखी है या परेशान है… मसलन, सीता हरण से राम दुखी हैं, लक्ष्मण चिंतित हैं, सीता लंका में दुखी हैं,अयोध्यावासी रामचंद्र के जाने और दशरथ को खो देने से परेशान हैं,रावण भयभीत और अहंकारी है,परंतु, हनुमान जी का ही एक चरित्र ऐसा है,जो स्थिरचित्त होकर भक्ति-भाव,आत्मविश्वास और समर्पण से भरा है। कभी भी, कहीं भी उनका चरित्र विचलित,परेशान या भयभीत होता हुआ नहीं दिखाई देता है।असीम बल के स्वामी होते हुए भी उन्होंने कभी भी, कहीं भी अपनी मर्यादा नहीं लाँघी।असंभव शब्द तो उनके लिए जैसे है ही नहीं।हनुमानजी हम सबको विपरीत परिस्थितियों में भी शांत मन और सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए प्रेरित करते हैं।
निष्काम सेवा भाव में लिप्त, ज्ञान और गुण के सागर,नौ निधियों,अष्ट सिद्धियों के ज्ञाता तथा दाता,महावीर, हर दुर्गम कार्य को करने वाले हनुमान आज इस कलयुग में सर्वाधिक प्रासंगिक लगते हैं। उनके उदात्त, निष्काम,मर्यादा पालक, सेवारत चरित्र से हर मनुष्य को सीखना चाहिए और अपनी जीवनशैली सद्बुद्धि और सद्ज्ञान की बनानी चाहिए ताकि हम ईश्वरत्व प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो सकें। अपने आराध्य के प्रति अटूट विश्वास और संपूर्ण समर्पण के उनके भाव से हनुमानजी सेवक से भगवान बन गए। जितने मंदिर हनुमान जी के हैं उतने तो भगवान राम के भी शायद नहीं होंगे। हनुमान जी कलयुग में ही नहीं हर युग के लिए प्रासंगिक, प्रेरणास्रोत और भगवान हैं।
जय बजरंगबली, जय श्री राम🙏
© अर्चना अनुप्रिया
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