" वो लास्ट सीन.."
"जीवन में कई मोड़ हैं, अपनी सुविधा के हिसाब से मुड़ जाना चाहिए यदि मंजिल ही लक्ष्य है तो.." पहाड़ की दुर्गम चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते ग्रुप कमांडर बोले जा रहा था। 10-15 लोगों का काफिला था, जो बर्फ के पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ने के लिए निकला था। मौसम रह-रहकर खराब हो रहा था, परंतु, तूफानों से लड़ते, हर कठिनाई पार करते सब साथ चले जा रहे थे। ऊपर जाकर सबसे ऊँची चोटी पर तिरंगा लहराना ही लक्ष्य था उनका।धीरे-धीरे साथ चलते-चलते सब चोटी पर पहुँच ही गए।उनकी खुशी का पारावार नहीं था। सब एक साथ गा उठे-"ताकत वतन की हमसे है, हिम्मत वतन की हमसे है, इस देश के हम रखवाले”... गाते-गाते ही सब एक दूसरे से गले मिले। फिर सबसे ऊँची चोटी पर तिरंगा फहरा कर, गर्वित होकर राष्ट्रगान गाने लगे।सबकी आँखों में गर्व और खुशी के आँसू झिलमिला रहे थे। सबका मन रोमांच से भर उठा था।फौलादी इरादों ने कामयाबी हासिल कर ली थी।आखिर उन्होंने वह कर दिखाया था, जिसका इरादा करके घर से निकले थे। पूरे दिन सब इधर-उधर घूम-घूम कर खुश होते रहे।शाम होते ही सेना का बड़ा सा हेलीकॉप्टर दिखा, जिस पर सबके वापस लौटने का इंतजाम था।सभी ने एक-एक कर तिरंगे को सलामी दी और हेलीकॉप्टर में वापस आने के लिए बैठ गए।हैलिकॉप्टर बेशक वापसी के लिए निकल पड़ा लेकिन, दूर तक और शायद हमेशा के लिए सबकी आँखों में लहरा रहा था कभी नहीं भूलने वाला,वह लास्ट सीन-- "झूमता हुआ तिरंगा,देश का गर्वीला मस्तक और हवाओं में बहती हुई मातृभूमि की अनन्य भक्ति..।"
© अर्चना अनुप्रिया
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