दीपावली की वह अद्भुत रात थी
श्री राम के अयोध्या वापसी की बात थी..
सारी धरा खुशियों से भरी थी
हर तरफ जलते दीपों की लड़ी थी..
प्रसन्नता भरे पटाखे फूट रहे थे
लोगों के सारे दुख जैसे छूट रहे थे..
हर तरफ लोग नृत्य में मगन थे
प्रेम उन्माद में धरा और गगन थे..
पर आसमां का चाँद बहुत उदास था
शिकायत भगवान से थी,कारण कुछ खास था..
सीता की याद में जब राम रात भर जागते थे
इसी चाँद संग अपने सारे आँसू बाँटते थे..
सीता भी लंका में जब अकेली होती थी
इसी चाँद की शीतल गोद में सोती थी..
घने वन में जब राम लखन भटकते थे
रास्ते उनके चाँद से ही रौशन होते थे..
युद्ध जीतकर राम ने जब सीता का हाथ लिया
हर जगह, हर घड़ी इस चाँद ने उनका साथ दिया..
आज जब यह शुभ घड़ी आई है
राम ने क्यों चाँद की याद भुलाई है..
सभी सियाराम को देख-देख खुश हो रहे
पर चाँद के लिए तो सब कुछ कलुष हो रहे..
क्यों ईश्वर ने विधि का ऐसा क्रम बुना
कि राम ने वापसी पर पूनम नहीं,अमावस चुना..?
जिस चाँद को शिव ने अपनी जटा पर धारण किया
क्यों राम ने उस चाँद को दुखी होने का कारण दिया..?
स्वागत समारोह में हर कोई शामिल हुआ
एक चाँद ही था जिसका अरमान धूमिल हुआ..
अयोध्या वापसी पर राम ने सबको याद किया
बस चाँद को ही भूल गए, जिसने दुख में साथ दिया..
सुनकर शिकायत चाँद की,राम ने हौले से मुस्कुरा दिया
नाम अपना रामचँद्र किया,चाँद को खुद में बसा लिया..
अर्चना अनुप्रिया
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