top of page
Writer's pictureArchana Anupriya

"सब्जियों की कथा.. टमाटर की व्यथा"




सब्जियों का,फलों का मेला लगा था,

हर सब्जी,हर फल परेशान बड़ा था.-

"ये क्या अजीब सी बात हो गयी है ?

छोटे टमाटर की क्या औकात हो गयी है?

ऐसा उसमें अनोखा सा क्या है ?

हममें भी तो गुण भरा हुआ है..?"

सोचा सबने, फिर मोर्चा खोला..

सबका चहेता-आलू बोला..


आलू --"गजब हुआ है बाजार ,देखो,

टमाटर का बढ़ा अहंकार देखो..

हर घर का 'लाल' बना हुआ है,

क्या कीमती माल बना हुआ है..!

जहाँ देखो,इतरा रहा है..

'हीरे'-सा भाव खा रहा है..

कल तक पड़ा रहता था कहीं पर,

फेंका हुआ रहता था जमीं पर..

आज कैसा रुतबे में उछाल हुआ है,

देश की 'थाली' का सवाल हुआ है..

घमंड में उसका सिर फिर गया है,

संसद तक सवालों में घिर गया है..

पिलपिले टमाटर में कोई जान है क्या?

हम भी तो गुणी हैं, किसी का ध्यान है क्या?"


सबने मिलकर फिर ताली बजाई,

आलू की बात से बात मिलाई..

टमाटर चुपचाप सब सुन रहा था,

हर सवाल के जवाब बुन रहा था..

सब्जियों का क्रोध वातावरण में बहने लगा,

जब आलू चुप हुआ तो टमाटर कहने लगा..


टमाटर--"हर कोई नाराज है मुझसे, मुझे पता है,

पर कहो साथियों, इसमें मेरी क्या खता है?

न मैं घमंड में हूँ, न सिर चढ़ा हुआ है,

मेरी क्या गलती है, अगर दाम बढ़ा हुआ है?

मेरी कीमत देखते हो,विनम्रता नहीं देखते?

तुम सबका स्वाद बढ़ाता हूँ, गुणवत्ता नहीं देखते..?

कब मैं अकेला भोजन में आता हूँ?

पिसता हूँ, फिर तुम संग घुलमिल जाता हूँ..

ऊपर से मैं सख्त भले हूँ,पर

अंदर से तो कोमल हूँ,

हर सब्जी के साथ खड़ा हूँ, 

उनके सुख दुःख में शामिल हूँ..

अकेले मेरा अस्तित्व ही क्या है? 

मजा तो तुम्हारे साथ आता है,

कीमत तो उसकी होती ही ज्यादा है,

जो सबका साथ निभाता है..

बाजार में जो आज मेरा हाल है भाई,

नहीं  कोई  उसमें  मेरी  चाल है भाई..

अकेला पड़ गया हूँ,

मन बेबस है, लाचार है,

इसमें कोई दोष नहीं मेरा,

दोषी तो समाज का ठेकेदार है..

लोग जब अनदेखा करते,

कितना दुःख पाता हूँ मैं..?

कीमत पूछते, मुँह बनाते,

क्या ऐसे में सुख पाता हूँ मैं..?

इतनी कीमती नहीं होना है,

कि लोग थाली से निकाल दें,

मुझसे सब बच-बचकर निकलें,

मेरे वजूद पर सवाल करें..

व्यथित हूँ, मैं भी कीमत से,

मुझे भी घर आना है,

यार दोस्तों के साथ मिलजुल कर,

हर खाने का स्वाद बढ़ाना है..

मोर्चा अगर बनाएं तो

क्यों न भ्रष्टाचार दूर करें?

हर जन भोजन का स्वाद चखे,

इस संकल्प को मंजूर करें..?"


सुनकर टमाटर की व्यथा,

सब्जी, फल-सब रह गए दंग..

बंद किया मोर्चा और एक हुए सब 

टमाटर को कर लिया संग.. 

सचमुच, कीमत होती है उसकी,

जो गुणकारी हो,सबका साथ निभाये..

घुलमिल जाये सब संग आसानी से..

सबकी जिंदगी का स्वाद बढ़ाये..                      

©अर्चना अनुप्रिया

138 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page