“हाय-हाय ये एग्जाम का भूत..
आजकल अजीब सा सपना आ रहा है..
ये एग्जाम तो भूत बनकर डरा रहा है..
हर रात एक सब्जेक्ट मेरी नींद उड़ाता है
कभी फिजिक्स तो कभी अंग्रेजी मुझे डराता है..
कैसे प्यारे जिल्द में बाँधा था कॉपी-किताब को
न जाने क्या हो गया है साइंस और हिसाब को..
साल भर तो कितने प्यारे,मासूम से बने रहते हैं
मार्च आते ही देखो तो भला कितने तने रहते हैं..
कभी अँग्रेजी,कभी हिसाब मुँह बनाकर चिढ़ाते..
न जाने छुपते कहाँ दिमाग में मेरी धड़कनें बढ़ाते..
हिम्मत की,फिजिक्स से पूछा,सोचा जरा पटा लूँ
ये हार्टबीट जो बढ़ने लगती है,सोचा जरा घटा लूँ..
पूछा...
“भाई भौतिकी, क्यों मुझ पर जुल्म ढा रहे हो?
रात भर रट्टा लगाया फिर भी याद नहीं आ रहे हो?
कुछ करम कर दो भाई कि फार्मूले सब याद रहें
थोड़ा प्यार बरसा दो तो हम नंबरों से आबाद रहें..
हिसाब,अंग्रेजी,रसायन,भूगोल सब सफा हो रहे हैं
साल भर प्यार से रखा,अब सब बेवफा हो रहे हैं..
परीक्षा के दिन तो तीन घंटे मेरा साथ दे दो भाई
कुछ डिजिटल सा हो जाऊँ,ऐसा हाथ दे दो भाई..
तुम्हारा अपना हूं मैं यार क्यों दूरी बना रहे हो?
फैन को अपनाने में क्यों मजबूरी दिखा रहे हो?"
हिसाब,रसायन सभी फिजिक्स के साथ हो गए
इतिहास,भूगोल सबके आहत जज्बात हो गए..
बोले–
“साल भर की मस्तीखोरी
अब चाहिए जादू ?
चैटिंग करो,रिल्स बनाओ-
ऐसे कैसे चलेगा बाबू?
क्लास में बोर होते हो,
जब मास्टर सब्जेक्ट पढ़ाते..
सबका पढ़ाई पर ध्यान कहां,
सब तो बस नैन लड़ाते..
फॉर्मूले से ज्यादा तो
ध्यान है सबको बॉलीवुड का..
पढ़ना नहीं, बस सपने देखना
बनते हुए रॉबिनहुड का..
होमवर्क जब देते टीचर
तुम कब मेहनत करते हो?
करते दौड़ भाग मां-बाप ही
तुम कब रंग भरते हो?
नंबर चाहिए बढ़िया-बढ़िया,
भले साल भर करो चैटिंग..
किताबें बस कोचिंग में खुलें,
घर में लाइक्स-डिस्लाइक की रेटिंग..
मेहनत नहीं करते हो तुम सब,
होते टीचर बदनाम..
रहा यही सिलसिला तो होगा
हर पीढ़ी पर इल्जाम..
क्या कहें अब ज्ञान के क्षेत्र में भी
आ गई है राजनीति..
ज्ञान तो वहीं रुका पड़ा है
बस, बन रही है रणनीति..
ज्ञान बढ़ाओ मत खर्चो दिमाग
मनाने में वैलेंटाइन..
तरस रहे हम सब पाने को
फिर से न्यूटन,आइंस्टाइन..
तुम्हें शिकायत-आते नहीं
हम समय पर तुमको याद..
रात-दिन मोबाईल पर अपनी
यादाश्त कौन कर रहा बरबाद?
समझ नहीं आता जब सबजेक्ट
पूछते कब हो गुरु से भाई?
कहाँ है परवाह गुरु की तुमको,
अब तो गूगल ही बाप और माई..
पढ़ने-लिखने में ध्यान कब है?
दौलत-शौहरत ही सब है..
परीक्षा के समय ही क्यों बेचैनी?
सोशल मीडिया तो तुम्हारा रब है..
क्यों फिल्मी क्लास में आइब्रो हिले
तो सारा देश हिल जाए?
अरे,करो कुछ ऐसा कि दुनिया देखे
तो दांत उंगली दबाए..
ध्यान धरो, है ज्ञान धरोहर
तुम व्यर्थ न समय गंवाओ..
कर मन,ऊर्जा का योग प्रकृति से
कुछ सृष्टि में नया बनाओ..
सुनकर सीख खुल गई नींद,
दिमाग खुल गया सारा..
उमड़ा प्यार पढ़ाई पर,
भागा डर का भूत बेचारा..
©अर्चना अनुप्रिया
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